संतमत का सरभंग सम्प्रदाय | Sant Mat Ka Sarabhang Sampraday

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sant Mat Ka Sarabhang Sampraday  by डॉ० धर्मेन्द्र ब्रम्हचारी शास्त्री - Dr. Dharmendra Brahmchari Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ० धर्मेन्द्र ब्रम्हचारी शास्त्री - Dr. Dharmendra Brahmchari Shastri

Add Infomation AboutDr. Dharmendra Brahmchari Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पृष्ठमूमि गौर प्रेरणा ५ ष्टुतः श्य का बहुलय से व्यव्हार किया है। उपनिषदो के निम्नांकित उद्धरण बह सिद्ध करते है कि इन शब्दों की प्रेरणा मी उनको उपनिषदौ से भिली- तेजोमयोऽमृतमयः पुरुषोऽयमेव स योऽयमात्मेद- मग्रतमिदः बे द सर्वम्‌ 1 श्रथवा-- श्रसंगो श्यं पुषः ।१८ श्रथवा- हिरण्मयः पुरुष एकहंसः ।*९ अथवा--- एको हंसो भुवनस्यास्य मध्ये स एवाग्निः सलिले सनिषिषटः | तमेव विदित्वाऽतिमृ्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ॥२० ब्रह्म-निरूपण के प्रसंग में संतो ने काल” और “निरंजन” इन शब्दों का प्रयोग किया है | ये एक प्रकार के 'अव्र-ब्रह्म! कल्पित किये गये हैं, जो द्वैत-विशिष्ट जगत्‌ के अश्रधिष्ठाता तथा नियन्ता हैं। उपनिषद्‌ का निम्नांकित श्लोक देखिए-- स्वभावमेके कवयो बदन्ति कालं तथाऽन्ये परिमुह्यमानाः । देवस्यैष महिमा ठु लोके येनेदं भ्राम्यते बह्मचक्रम्‌ २१ श्वेताश्वतरोपनिषद्‌ के षष्ठाध्याय में “निगु ण”, 'काल' और निरञ्जनः का विशेष रूप से विश्लेषण किया गया है। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि उपनिषदों का प्रभाव संत-साहित्य पर कितना अधिक पड़ा है । संतमत ने जहाँ उपनिषदों के अद्वेत-सिद्धान्त का ग्रहण किया है, वहाँ साथ ही-साथ उसने उनके उस अ्रविद्या-तक्व या माया-तत््व को भी स्वीकृत किया है, जिसके कारण अद्वेत द्वेत के रूप में, और एकत्व बहुत्व के रूप में प्रतीत होता है। उपनिषदों के अनुसार सृष्टि के पूर्वं एकमात्र तत्व॒श्वत्‌ः था । देव सोम्येदमग्रमासीदे- कमेवाद्वितीयम्‌ ।*२२ उस 'सत्‌! ने कल्पना की, कि में बहुत हो जाऊँ और फिर पंच- भूतादि की सृष्टि हुई-- तदैज्षत बहु स्पाम्‌ प्रजायेयेति |१३ “सत्‌” अ्रथवा 'ब्रक्च/ में इस प्रकार के बहुत की आकांक्षा ही अविद्या अथवा माया है। यथा -- इन्द्रौ मायाभिः पुदरूप हैयते |२४ श्र्थात्‌, इन्द्र श्रपनी माया से अदहुरूप विदित होते ई] महेश्वर को भायी' कहा गया है और यह बतलाया गया है कि उसी मायी ने इस विश्व की सृष्टि की है और स्वयं वह उसमे कराया! के द्वारा आबद्ध हो गया है-- छन्दांसि यज्ञाः क्रवो व्रतानि भूतं भव्यं यञ्च वेदा অহন্নি। रमान्‌ मायी सूते विंर्बमेतत्तस्मिंश्चान्यो मायया संनिरुद्धः ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now