स्त्री और पुरुष | Stree Aur Purush

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : स्त्री और पुरुष  - Stree Aur Purush

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ज्ञानचंद्र - Gyanchandra

Add Infomation AboutGyanchandra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१० स्‍त्री ओर पुरुष दूसरा मार्गे आद्शंका निर्देश कर देना है, जिसे मनुष्य कभी प्राप्त नहीं कर पाता, प्राप्न करनेका सतत्‌ प्रयत्न किया करता हे; उस श्रादशेसे बह कितना दूर है, यह देखकर वह अपनी कमजोरियोंका अंदाज लगाता है और उन्हें दुर करनेकी चष्ट करता हे । “काया, वाचा, मनसा इश्वरसे प्रेम कर और अपने पड़े।्स।को निजके समान प्यार कर ।? परम-पिताकी भांति पूणे बन । ये ईसाके उपदेश हैँ । धर्मके बाहरी नियमांका पालन करनेकी कसौटी है कि मनुष्य- का बाह्याचरण उन नियमोंके अनुकूल हो, और यह संभव हे । देसाके उपदेशोका पालन करनेकी कसौटी ह कि मनुष्य पूरे द्रादशं तक न पहुंच सकनेकी श्रपनी कमजोरियोके प्रति सतत्‌ सजग रहे ( वह यह तो नहीं देख पाता कि वह आदशके कितने निकट पहुंच सका है, पर वह यह अवश्य देख लेता है कि वह आदशंसे कितनी दूर है )। बाहरी नियमोंका पालन करने वाला मनुष्य खंभे पर टंगी लालटेनके प्रकाशमें खड़ा रहने वाले मनष्यके समान हे । वह लालटेनके प्रकाशमें खड़ा है, उसके चारों ओर प्रकाश है, पर उसे आगे का मार्ग नहीं सूमता | इसाके उपदेशों पर चलने वाला मनुष्य उस मनुष्यके समान है जो आगे-आगे लालटेन लेकर चल रहा हो । प्रकाश सदा उसके आगे रहता है ओर वह उसका बराबर अनुसरण करता रहता है; प्रकाशमें उसके सामने बराबर नया मागै प्रकट होता रहता है । एक फारिसी' समस्त नियर्मोका पालन कर इश्वरको धन्यवाद १--यहू दियोंका एक संप्रदाय, जो हजरत मूसके सभी नियमोंका दमसरशः पालन करने पर जार देता था।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now