भारतेन्दुकालीन हास परिहास | Bhartendu Kalin Has Parihas

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Bhartendu Kalin Has Parihas by ब्रजेन्द्र नाथ पाण्डेय - Brajendra Nath Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे रा फ्क् ग्ियमं | हु च० हदीजछ इंण | सीधा इन्साफ किसी ने एक लड़के से पूछा चॉद दौर सूरज में तुम किसको बड़ा समझते हो लड़का बोला चाँद को क्योंकि जब दिन को रोशनी की जरूरत नहीं रहती तंत्र सूरज रोशनी देता है पर प्यारा सँद रात को रोशनी देता है जब कि उसको सबको जरूरत रदती है । शी एक कायस्थ अनचढ़ घोड़े पर बैठा द्वार में चला ज्ञाता था । किसी घुढ़चढ़े ने उत्ते मेड़की से भी पीछे हटा बैठा देख के कहा मैया जी। कुछ छाये हर बैठी बोला क्यों 7 कहा ब्रासन खाली है फिर उसने उत्तर दिया क्या तुम्हारे कहे से इठ बैठरो ? जैसे साईस ने वैठा दिया है तैसे बैठे ले जाते हैं के किसी बड़े झादमी के पास घक ठठोल जा वैठा था और इसके यहाँ कहीं से गुड़ आया उसने ठडे से कहा कि महाराज 1 मैंने जन्म भर में तीन बिस्याँ बार गुड़ खाया है बाला बखान कर कहा पक तो छुटठी के दिन जनमघूदी में खाया था श्रौर एक कान छिदाये थे तब श्रौर एक बाज खाऊँगा उन्ने कहा जी मैं न दूँ ? बोला दो ही बार खाया सही | शक




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