वृन्दावनविलास | Vravandanvilas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१०1 १ ১০১১১১৫৩১১১ जीचनष्वरित्र । १५ + आरामे जप प्राय आया जाया करते थे । वहाके बाबू परमेष्टीदास- जौसे आपका विशेष धर्मल्रेह था । उन्हें कवितासे अतिशंय प्रेम था । अध्यान्मशास्त्रोंफे ज्ञाता भी आप खूब थे । इनके विपयमें कविवरने प्रवच- नसारमें लिया है,--- संवत चोरानूमें सुआय । भारेतें परमेष्टीसहाय ॥ सध्यातमरंग पे प्रवीन। कवितामें मन निशिदिवस छीन ॥ सजनता ग़ुन गरुवे गंभीर । कुछ अग्रवाल सुविशारू धीर ॥ ते मम उपगारी प्रथम पर्म । सांचे सरधानी विगत भर्म ॥ आराके बाबू सीमधरदासजीसे भी आपकी धर्मचचां हुआ करती थी । नवत्‌ १८६० में जब कविवर काशीमें आये थे, उस समय वहा जै- द नधर्मके घराता्जारी अच्छी नेटी धी । आदतरामजी, उयटालजी सेठी টু चक्तूलाटजी, काणीनाथजी, नन्टरूजी, अनन्तरामजी, मूल्चन्दजी, गोकुल- डर चन्द्जी, उदयराजजी, गुलावचन्दजी, भेरवप्रसादजी अग्रवारु, आदि अनेकं सनन धमौत्मामेकरि नाम कयिवरने अपने ग्रन्थोंकी प्रशस्तिमें दिये । इन सबकी सतसंगतिसे ही कविवरकों जनधमसे प्रीति उत्पन्न हुईं थी आर इन्हींकी प्रेरणासे अन्धोके रचनेका उन्होंने ग्रारभ किया था । बाबू संसलालजीफो तीस चाबीसीपाठकी प्रशस्तिमें कविचरने अपना गुरु ब- तलाया है, “'क्राशीजीम काशीनाथ मूलचन्द नंतराम, नन्‍्हूंजी गुावचन्द भेरक प्रमानियो । तहां धर्मचन्दनन्द शिष्य सुखलालजीको, वृुन्द्रावन अग्नवाल गोरूगोती वानियों ॥? बाबू उदयराजजी लमेचूसे कविवरकी अतिशय प्रीति थी । अपने प्र- 7४ ले व 4 # নার সানি ~~ ~ নি ५4 र द कीर 4 পটে नई ৯. শি শি = कर -{4 द र দু $ क्र की < + 4৫ + 7९४ এ, 4-८4८-49 --4- ~> २ क ५ টি ~~~ স্টক ক , अं: न्थोंमें उन्होंने उनका बडे आदरसे स्मरण किया है,-- ५1 “सीताराम पुनीत तात, जु मातु हुखासो 1 र स्वाति रमेचू जनधसंकर, विदित भ्रकासो ॥ ५ तसु कुख-कमर-दिनिद्‌, च्रात मम उद्यराज वर । है अध्यातमरस छके, भक्त जिनवरके दिडतर ॥” ০১৩১১১৩১১১৩ ~> শত 4 फ ४ {




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