वृन्दावनविलास | Vravandanvilas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१०1
१
১০১১১১৫৩১১১
जीचनष्वरित्र । १५ +
आरामे जप प्राय आया जाया करते थे । वहाके बाबू परमेष्टीदास-
जौसे आपका विशेष धर्मल्रेह था । उन्हें कवितासे अतिशंय प्रेम था ।
अध्यान्मशास्त्रोंफे ज्ञाता भी आप खूब थे । इनके विपयमें कविवरने प्रवच-
नसारमें लिया है,---
संवत चोरानूमें सुआय । भारेतें परमेष्टीसहाय ॥
सध्यातमरंग पे प्रवीन। कवितामें मन निशिदिवस छीन ॥
सजनता ग़ुन गरुवे गंभीर । कुछ अग्रवाल सुविशारू धीर ॥
ते मम उपगारी प्रथम पर्म । सांचे सरधानी विगत भर्म ॥
आराके बाबू सीमधरदासजीसे भी आपकी धर्मचचां हुआ करती थी ।
नवत् १८६० में जब कविवर काशीमें आये थे, उस समय वहा जै-
द नधर्मके घराता्जारी अच्छी नेटी धी । आदतरामजी, उयटालजी सेठी
টু चक्तूलाटजी, काणीनाथजी, नन्टरूजी, अनन्तरामजी, मूल्चन्दजी, गोकुल-
डर चन्द्जी, उदयराजजी, गुलावचन्दजी, भेरवप्रसादजी अग्रवारु, आदि
अनेकं सनन धमौत्मामेकरि नाम कयिवरने अपने ग्रन्थोंकी प्रशस्तिमें दिये
। इन सबकी सतसंगतिसे ही कविवरकों जनधमसे प्रीति उत्पन्न हुईं थी
आर इन्हींकी प्रेरणासे अन्धोके रचनेका उन्होंने ग्रारभ किया था । बाबू
संसलालजीफो तीस चाबीसीपाठकी प्रशस्तिमें कविचरने अपना गुरु ब-
तलाया है,
“'क्राशीजीम काशीनाथ मूलचन्द नंतराम,
नन््हूंजी गुावचन्द भेरक प्रमानियो ।
तहां धर्मचन्दनन्द शिष्य सुखलालजीको,
वृुन्द्रावन अग्नवाल गोरूगोती वानियों ॥?
बाबू उदयराजजी लमेचूसे कविवरकी अतिशय प्रीति थी । अपने प्र-
7४ ले व 4
#
নার সানি
~~ ~ নি
५4
र
द
कीर
4
পটে
नई
৯. শি
শি = कर -{4
द
र
দু
$
क्र
की
< +
4৫ + 7९४ এ,
4-८4८-49 --4- ~>
२
क
५
টি
~~~ স্টক ক
, अं: न्थोंमें उन्होंने उनका बडे आदरसे स्मरण किया है,--
५1 “सीताराम पुनीत तात, जु मातु हुखासो 1
र स्वाति रमेचू जनधसंकर, विदित भ्रकासो ॥
५ तसु कुख-कमर-दिनिद्, च्रात मम उद्यराज वर । है
अध्यातमरस छके, भक्त जिनवरके दिडतर ॥”
০১৩১১১৩১১১৩ ~>
শত
4
फ
४
{
User Reviews
No Reviews | Add Yours...