गिरिजा कुमार माथुर के काव्य की बनावट और बुनावट | Girija Kumar Mathur Ke Kavya Ki Banawat Aur Bunawat

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Girija Kumar Mathur Ke Kavya Ki Banawat Aur Bunawat by डॉ मधु महेश्वरी - Dr. Madhu Maheshwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ढ विषय-प्रवेश अन्धी लिप्सा बहू उपनिदेश हथियाने की चढ़ चले जीतने सिन्घु भयंकर स्टीमर लौर गोलों के ले काले पहाड़ जल-थल के कोने-कोने में केलाने संगोनों से अपना सामराज 1 जद शरद पर परिवर्तन का तेज चक़ बढ़ता आगे है घार काटतो नागपाश बस इसीलिये होगा विनाश--- मानव का मानव पर दुख दोहन असबार इसलिए कि रुकता नहीं कभी गति का पहिया अविरल चलता विकास का क्रम बह पास लिये आता है मनुज समाज नया जब दुःख की सत्ता मर जायेगी पीले बासी फूलों सी 1 डर स्पष्ट है कि कबिं मायुर के काव्य में प्राप्त अपंगामी सामाजिक दृष्टि और परि- बर्तन का स्वर व मानवीय समाज में मनुष्य को प्रतिष्ठित करने के भाग्रह की प्रवृत्ति यही अन्तर्राष्ट्रीय पृष्ठभूमि है । रो राष्ट्रीय पृष्ठभूमि भारतेन्दु युग राष्ट्रीय जागरण का युग था । अग्रेजों के दुर्व्यवहार ने भारतीयों के सम्मुख उनकी वास्तविक स्थिति स्पष्ट कर दो थी । अब वे अंग्रेजों कौ स्वार्थपूर्ण नीति से अनभिन्न नहीं थे । उनके हृदय में विद्वोह की अग्नि प्रज्वलित हो उठी थी ओर वे हिसात्मक कार्यों की ओर प्रवृत्त होने लगे थे । श्री उमेशचन्द्र बनर्जी के समापतित्व में उदारपंथी विचारधारा की प्रतिनिधि संस्था-- इंडियन नेशनल कांग्रेस का तिर्माण हुआ । इस संस्था का उद्देश्य शान्तिदूर्ण साघनों द्वारा भारतीयों की दशा में सुधार करना था। संस्था के सभी कार्यकर्ताओं के अयक परिश्रम करने पर भी स्थिति उलझम- वैचित्यपूर्ण ही रही । ऐसे समय में तिलक ने कांग्रेस में प्रवेश किया । स्व- राज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है के नारे ने आग में दी का कार्य किया । जनता में जागृदि की भावना प्रबलंतर होते लगी । संयोगबश समस्त विश्व में भी कुछ ऐसी चढनाएँ घटी जिनसे भारहोयों में राष्ट्रीय-चेतना का उत्मेष हुआ । १. प्रूप के घान मायुर पु० र१।




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