सुन्दर और असुंदर | Sundar Aur Asundar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
जैसे एकदम सचेत-सी हो उठी । उन्होने नेत्र खोल दिए और चारो झोर
दृष्टि चुमाकर देखा । उन्होने उबडबाए नेत्रो से भ्रपने पति के विक्षिप्त चेहरे *
पर दृष्टि डाली ।
डाक्टर ने उनकी नाडी का परीक्षण किया तो देखा कि गति
बहुत मद पड गई थी। उसमे कोई सुधार नही हो रहा था। वह् एक
इजेक्शन लगाकर चले तो प्रकाश के पिताजी ने कमरे से बाहर निकल-
कर उत्सुकतापूर्वक पूछा, “भ्रब कैसी दशा है डाक्टर साहब ? क्या इनके
प्राण बचने की कोई झाशा है ? ”
डाक्टर साहब गम्भीर वाणी मे बोले, “श्रमी बहुत चिताजनक स्थिति
है। नाडी की गति मे कोई सुधार नही हुआ । मै पूरा प्रयत्त कर रहा हू।
श्रौर एक इजेक्शन एक कागज पर लिखकर बोले, “लो, यह् इजक्डान बाजार
से मगवालो। इसे लगाकर देखता हू केसा काम करता है 1
प्रकाश के पिताजी ने अन्दर आकर वह पर्चा प्रकाश को देकर कहा,
“बेटा, जल्दी से बाजार जाकर यह इजेक्शन तो ले आश्रो । डाक्टर साहब
ने नया इजेक्शन लिखा है यह ।
प्रकाश के पिताजी की यह बात प्रकाश की माताजी के कानो मे पडी
तो उन्होने नेत्र खोल दिए श्रौर बहुत धीमे स्वर मे बोली, “भ्रब तुम यहा
से इजेक्शन लेने नःजाना'ड्ेटा |! ' और फिर प्रकाश के पिताजी की ओर
करुण नेत्रो से देखकर बोली, “प्राणनाथ ! मै कितनी अ्रभागी हु कि आपको
अस्वस्थ अवस्था मे इस प्रकार श्रकेला छोडकर जा रही हू । मै जाना नही
चाहती प्रकाश के पिताजी ! परन्तु क्या करू मेरा दिल डूबा जा रहा है।
मैं सभाल नही पा रही अपने को । मेरा बदन टूट रहा है। मालूम देता है
प्राण निकल रहे है । ्राज मेरी श्रायु ठीक पेतीस वर्ष की हुई है और मुझे
स्मरण है कि मेरी माताजी की मृत्यु भी इसी ग्रवस्था मे हुई थी। वे मुभे
अपने श्रक मे भरकर पता नही कहा ले जाना चाहती है। वे अपने दोनो
हाथ फैलाए मेरे सम्मुख खडी है। मैंने गिडगिडाकर उनसे विनती की है कि
मुझे कुछ दिन के लिए और छोड दे । प्रकाश के पिताजी की तबीयत ठीक
नही है । वे मेरे बिना रह नही सकेगे, जी नही सकेगे । मुझे तुम ले गई तो
उनकी सेवा कौन करेगा ? मेरा घर उजड जाएगा। मेरा बच्चा प्रकाश
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