तुलसी के चार दल | Tulasi Ke Char Dal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोस्वामी तुलसीदास का जीवन-वृत्त ११ पहले कुछ छंदो को पढ़कर मेरी भी यही घारण बँध गई थी परंतु बाद की कुडलियाँ पढ़ने से मुझे उक्त ग्रंथ गोस्वामीजी-कृत नहीं जंचता । उसके क्रियापद, शब्द-प्रयोग तुलसीदासजी के नहीं जचते। परंतु ग्रंथ की पूर्ण समीक्षा बिना कोई सम्मति निश्चित नहीं की जा सकती। गोसाइजी-कृत बारह ग्रंथों का संज्ञिप्त परिचय नीचे दिया जाता है। 'दोहावली' गोसाइजी के उन दोहों का संग्रह है जो उन्होंने भिन्न भिन्न लौकिक स्वरूप तथा भगवान्‌ के नाम के माहात्म्य अर धर्म आदि के ऊपर कहे हैं। इनकी संख्या ४७४ कही जाती है। इनमें से कुछ दोहे तो रामायण में से ज्यों के त्यों निकालकर रख दिए गए हैं। कुछ ऐसे हैं जिनका आशय सरलता से समझ में नहीं आता । चातक की न्योक्तियों मँ उनकी सच्ची लगन अंकित . है। इनमें से कुछ तो अत्यंत सुन्दर हैं; जेसे-- चातक तुलसी के मते, स्वातिहु पिये न पानि। पेम-तृसा बाढत भली; ष्टे घटेती आनि।॥ रटत रटत 'रसना लट, तसा सुखिगे अंग। तुलसी चातक-प्रेम को, नित नूतन रुचि रंग॥ बध्यो बधिकं परयो पुन्य जल, उलि उठाई चोच । तुलसी चातक-प्रेम-पठ, मरतहु लगी न खोच ॥ इंसमें कुछ दोहे ऐसे भी हैं जिनमे दाशनिक सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ है। अपने समय की शासन-प्रणाज्ञी के विषय में भी कुछ दोहे कहे हैं। गंगापुत्रों को दान देने की प्रणाली का भी विरोध किया गया हे। इस प्रकार तुलसीदासजी का यह ग्रंथ सभी विंषयों की विवेचना द्वारा अलंकृत है | अपने समय की दशा का संकेत करनेवाले गोसाइजी के कुछ दोहे नीचे दिए जाते हैं-- बादहिं सूद्र द्विजन सन, हम तुमते कुछ घाटि। जानहिं ब्रह्म सो विप्रवर, आ्रॉँख दिखावहिं डाँटि॥ १४३ ॥। साखी सबदी दोहरा, कहि किहनी उपखान। भगति निरूपहिं भगत कलि, निदर्हिं वेद पुरान ॥ ५५४ |,




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