प्रमुख रूपको में लोक संस्कृति एक समालोचनात्मक अध्धयन | Pramukh Roopko Me Lok-sanskriti Ek Samalochanatmak Adhayayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pramukh Roopko Me Lok-sanskriti Ek Samalochanatmak Adhayayan by मृदुला त्रिपाठी - Mridula Tripathi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मृदुला त्रिपाठी - Mridula Tripathi

Add Infomation AboutMridula Tripathi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
करता है ।' ऋग्वेद के सुप्रसिद्ध पुरुष-सकत में लोक शब्द का व्यवहार जीव तथा स्थान दोनों अर्थो मे हआ है) ऋग्वेद के अतिरिक्त अथर्ववेद में भी लोक का सद्केत मिलता है । अथर्ववेद में दो प्रकार के लोक की स्थिति व्यक्त की गयी है । एक मन्त्र म आये कस्मात्‌ लोकात्‌ ,.. ` का अर्थ है किस लोक से अर्थात्‌ एक से अधिक लोक कौ सम्भावना व्यक्त की गयी है । सम्भवतः यहाँ पर लोक शब्द भुवन के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्तम भी ब्रह्मचारी के विषय में बताते हुए 'लोक' का प्रसङ्ग. आया है- वह (लोकान्‌ संगृभ्य) लोगों को इकट्ठा करता हुआ अर्थात्‌ लोक सुग्रह करता हुआ ओर बार-बार उनको उत्साहित करता है।* यँ लोक का प्रयोग लोग के अर्थ में हुआ है । अथर्ववेद में ही उत्तम स्त्रियो की रक्षा के सन्दर्भ म लोक का प्रसडग आया है! यहाँ 1 य इमे रोदसी उमे अहमिन्द्रतुष्टवम्‌ । विश्वामित्रस्य रक्षति ब्रह्मेदं भारत जनम्‌ 11 ऋग्वेद - 3/53/121 2 नाभ्या आसीदन्तरिक्ष, शीर्ष्णो द्यौ समवर्तत । पदम्या भूमि दिश श्रोत्रात्‌ , तथा लोकानकल्पयत्‌ ।। पुरुषसूक्त, ऋग्वेद । 3 कूतस्तौ जातौ कतम सो अर्धं कस्माल्लो कात्कतमस्या । वत्सौ विराज सलिलादुदैतां तौ त्वा पृच्छामि कतरेण दुग्धा [| अथर्वविद 8491 । 3 व्रह्मचर्यति खमिधा समिद्ध का्ष्णक्सानो दीक्षितो दीर्घश्मश्रु । स सद्य एति पृर्वस्मादुत्तर समुद्र लोकान्त्यख्यूभ्य गुहु राचारिकत्‌ 11 अथर्ववेद 11547 4 यासामृषभो दूरतो वाजिनीवान्त्सद्य सर्वान्‌ल्लोकान्पर्यैति रक्षन्‌ 11 अथर्ववेद 4८385 4 बहुव्याहितो वा अय बहुशो लोकः ।। जैमिनीयोपनिषद्‌ ब्राह्मण 328 । 5 सस्कृति के चार अध्याय - डो रामधारी सिह दिनकर, पृष्ठ 162 ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now