चील और चट्टान | Cheel Aur Chattan

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Cheel Aur Chattan by कर्तार सिंह दुग्गल - Kartar Singh Duggal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ বীজ সী चट्टान लाल रग की शराब, जिसका एक-एक घट उन्हें मदहोश कर रहा था, चकरा रहा था, भ्रोंधा कर रहा था। जहाने ने बताया कि रियासत जीद से उसके एक लगोटिये भित्र ने यह बोतल उसे उपहार स्वरूप भेजी थी, और उसकी एक-एक बूँद उसने अपनी आँखो के सामने निकाली थी । दोनो निरन्तर पी रहे थे । श्रौर तब, बाग की सुनसान सध्या रात के सन्नटे मे बदल गई, श्रासमान पर कही-कही तारे टिमटिमाने लगे, कुएँ के भीतर के जल मे मेढक टर्रनेंक्धमों और फिर उनके टर्राने के स्वर ऊंचे होते गए। झास-पास के गावो से उभरता हुआ धुरम प्रधकार में विलीन होता गया। दूर गाँव की मस्जिद मे 'अज़ाँ झरभ हुई और समाप्त हो गई, कितु वे पीते रहे, पीते रहे ! भ्राखिर पीते-पीते जहाना लेट गया भ्रौर वह फूट-फूट कर रोने लगा, रोता जाता और कुएँ की मेढ पर बिछता जाता । शेरे ने उसे समझाया, ढारस बँंधाई भ्रौर बालकों की तरह उसे उठा कर अपने पास बिठा लिया और बडी देर तक वह उसका दिल बहलाता रहा । “अबे तुझे कौनसी गधी याद श्रा गई ? ससुरी के, वह तेरे किस काम की ? पिछले हफ्ते वह मुझे शहर मे मिली थी, नजाकत झा गई है सु्ररनी मे । काम-काज के वक्त, दिन को भी दूधिया सफेद उजले कपडे पहने हए थी । एेसी नखरे वाली श्रौरत तेरे किंस काम की ? जहाने की बस एक अभिलाषा थी । शेरा जिस प्रकार तेज और अडियल घोडो को सीधा कर लिया करता था, वैसे, यदि बहु दो मास भी उसके पास टिक जाती तो वहाँ से कभी हिलने का नाम ने छेती । कितु वह तो दसवे दिन ही किसी परदेसी-पथिक के साथ चल হী। “एक तो यह जी चाहता है” जहाने ने आह भर कर फिर बोलना आरंभ किया--“किसी रात जाऊं भ्रौर उसे निकाल জাউ 1” औौर फिर उसकी आँखों में भाँसू डबडवा भाए ।




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