मन परदेसी | Mann Pardeshi

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Mann Pardeshi by कर्तार सिंह दुग्गल - Kartar Singh Duggal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहा। हिन्दू-मुस्लिम एकता ! देख लिया न हिन्दू-सिखो की दोस्तो का नतीजा ? इस लडकी के तौर-तरीके तो मुझे कभी एक आख नही भाए। पहले, इसे दिल्ली पढ़ने के लिए भेजा ही क्यों गया ? बया यहां अपने शहर में कोई कालेज नही था ? और लोगों को वेटिया क्या तालीम नही पाती ? कोई बात हुई कि मुझे जो मजमून पढना है, वह यहां पढाया नहीं जाता । देख लिया तुमने कि वह कौन-सी पढाई करने गई थी ? कौन-सा मजमून पढने गई थी ? » मेरी बेटी होती तो मैं गोली से उडा देता। अब भी मैं कौन-मा उसे माफ़ करूगा ? अपने खानदान की आवरू, में जान पर खेलकर भी, उसके उस 'सिख' से बदला लूगा । अगर उसकी कोई बहन है तो उसे “निकालकर लाऊगा । अगर उसकी कोई मां है तो उसे अगवा करवाऊगा। चाहे मुझे हजारो न लुटाने पड़े । हमारे शहर के गुडे दूर वंबई और क्ल- कत्ता तक बार करते हैं। ढेरों रुपये का चदा मैं उन्हें देता हु । आज एक अरस से ऊपर हो गया है । कितनी हिन्दू और सिख लडकियों वी उन्होंने इज्जत लूटी है । बदजात लडकिया चू तक नहीं करती । मुह से शिकायत सक नही करती । हिन्दू धर्म भी कोई धर्म है, जैसे रद्दी की टोकरी हो ! सब तरह का कूडा इसमे समा जाता है। ४ मैं कहता हू कि पहला कुसूर तेरे शोहर का है। “महात्मा गाघी । महात्मा गाधी' र॒टता रहता था। अब ग्ाधी को वुलाकर लाओ कि छुड्ाए तुम्हारी वेटी को किसी सिय दरिन्दे के चगुल से ! बडा 'हिन्दू-मुस्लिम शकता' की डीगें हाकता था । जब जवाहरलाल की बहन, विजय लक्ष्मी डाक्टर महमूद से ब्याह करना चाहती थी, उसने आप बीच में पडकर लडकी को रोक दिया, तब कहा गई थी उसकी हिन्दू-मुस्लिम एकता ? मुसलमाव लडकी हिन्दू से ध्याह कर सकती है, हिन्दू लडकी मुमलमान से नही ब्याही जा सकती--आखिर क्यों ? ” इसने में बेगम मुजीव की जेठानी आ गई। वाहर-आगन से ही माया पीट रही धी । कमरे में घुसते ही उसने दहाडना शुरू कर दिया 1 वाल नोच रही थी और छाती पर घूसे मार रही थी । जैसे घर मे किमीकी मौत हो गई हो। वार-वार सीमा को बुरा-भला कह रही थी। उसे इस मन परदेसी / २५




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