बृहत जैन शब्दार्णव खंड 2 | Brahat Jain Sabdarnav khand 2

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Brahat Jain Sabdarnav khand 2 by ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_अविकरण ७. -.. बूहव जन इब्दाणव। 2 अधियम्‌ | [ २८७ ` तीक लोकव्यापी एंक जख॑प्ड द्रव्य है, नो स्वये ठहर- | अहृण करनेक्ी क्रिया | वह २५ क्रियाजोंमेसे ८दीं नेवाले जीव और पुद्ुछोंको ठहरनेमें सहकारी होता | क्रिया'है नो मालदफे सानेमें कारणमृत है। देखो है, परणा नहीं. करता है | जैसे छाया पथिक्रकों ठह- | अघक्नारी क्रिया शठद (प्र० खं० ए० ७६) | रनेमें कारण होती. है वेसे ही उदासीनपनेसे यह | अधिक्रणिक-युख्य जन-युनराठमे चमी : क्षारण पढ़ता है। इतना जरूरी है कि यदि इसकी | रानाओंद राज्य था, उत्त समय १८ अधिझारी नियत सत्ता न माने तो कोई वस्तु थिर चहीं रह सकेगी। | होते थे-(१) सायुक्तिक या वितियुक्तिक-मुख्य अधि यह छोक जो ३४३ घत राजू प्रमाण एक मयोदामें | कारी (२) द्रांगिक-नगरक्ा जधिक्वारी (३) महत्तरि यन रहेगा, यदि ण्म व्यक्तो न माना | प्रामपत्ति, (४) चाव्मट-पुलिप्त तिणदी, (५) श्रव जायया | यह्‌ द्रवण या परिणमनशोर ६, इदे | थामझा दित्ताव रखनेदाला वेश्न जधिकारी, तकारी इसको द्वव्य कहते हैं। इसमें छोहझव्यापीपना है | वा इल्छरणी, (द) सधिङरणिर मुख्य जन, (७) स्थात्‌ यद अप्तष्याठ बहु प्रदेरी है | इपल्यि | ठंडपा्तिर-पुख्य पुटित याकि, (८) चौरीदर्धि इप्तको भस्तिकाय कहते हैं। एक प्रदेयीष्रो सस्ति- | चोर पकडनेवाक्ञ, (९) रमस्थानीग्र-दिदेत्ती रान- काय नहीं कह सक्ते । जेते कार्दरव्य (सवा ° स ० | मंत्री, (१०) जमालरमनी, (११) अनुन्वन्नायान ६ सु० १३८३ १३६ व१७)। प्मुदग्राहक-पिछकाकर बछुझ करनेदाला, (१२) अधिकरण-णाघार-जिप्तमें फ़ोई वस्तु रहे । | शोल्किक-छुगी जाकिपर, (१३) सोगिक या मोगो- पदा्थौक्नो जानने ८-६ रीतियां हं १ निरदेप- | द्णिक-सामदनी वा देर्‌ वल्ल इरनेदाला (१ ४) स्वरूप फथन, २ स्वामित्व-मालिन्न वताना, २ साधन- | वत्मेपाछ-मार्गनिरीक्षक सवार, (१५) प्रतिप्तरक्ष छेन्न होमेका उपाय वताना, 2. मधिकरण-कहां वह रहती | जोर गझामोंके निरीक्षक, (१६) विषयपति-प्रतिफे है प्तो बताना, ५ स्थिति-फालक्की मर्यादा बताना, | साकिप्तर (१७) सा्ट्रति-शिलेके आद्विपर, ६ विधान-उप्तके भेद बताना (सदों० जु० १ सु० | (१८) द्यामपति-ग्रामझ मुद्तिया (ब८ एम ७), फर्मोकि जानेके कारण জী भाव हैं उनमें अवि- | ४०९ १५० )1 करण भी है। नजीद व जनीपक्े भेदसे दो प्रकार अधिकरण है। नीवाधिक्रण सर्वात सीने र्ये आधार, भिनसे চটী जाते हैं। वे ६०८ हर- ह होते दुं} ससम (हरदा) মাহ (দ্বন্দ) ও ! ~< 1 কু | पं पर হা प यर्‌ भःम मदर! न 4 न ५ | [१ का শী অক স্পা तीनो 1 ननु ইসস ১2 এ जारम्म (शुरू না) নে বীনজী मन, दन, एय, ¦ আছি হগ্ভয়নছালরেন পয 1० ॥ [क क क পিন द (न क নি তত ৬ 1 ~ ॥ = =+ ॐ সপ ক পাপা वे कृत, पर लनुमोदप! ये क्रीष, मान, माया, হন লিমার হায় হজ भद সপ ॥ = क [ (न পক পা ৬০৪ চির रोम टम चार कपनोींसे হুজি হক হিতল আহনবাহহটন কা সা হত নিত হজ সত ই, घर हि डे ४ न উজির কুচি বা সাবি তি [০১ नुः ৩ भेद ६१३ {= चद दत कनद তি দিত + 5 = ह 1 (नमन ~. द दह ॥ र ल क + श = च ~ न পি ২ कक शधि টা ৬০ कके সপ ক্ষ न भभ কউ পক জপ পাও এ च ५५ + जक হত অধ বক বাহ টি দা হন हो सनम्‌ | भो অনীহহহার हो ध, হা পা + ~ + शः न তান $ হা ইনি {~ ध কন ভগ एरी स(रनश्न (दनद হলো! हम्दा।।पर रण হাসিল হকি ४६ তিনি সহিত, দহ শা ভুত = ~~ ०. ५ ২ तः ( ज ৯ ০৯ कह ६२८ 5 भ १ १६ भेद নন লিন धमक ससद ` दप दन হি নার টেক {र ते २१ = का $ क >, 79 क~~ भ~ সপ (4 ~ ~ वैः 2 ६.4 +~ दर वु वः টা (न (६ 2 र 11 রি र ^, १ इ न कः ¢ वि भिक्त त £ হুড হজহ আলির লি त क्‌ च~ সে সু ই রি র্‌ २ £ अ ॥ प ^ ५५ क ए ॐ + | पक হা ॥ म পুজা ৮০ रै ॐ दृष ~ = { বত ০ £: र्‌ সির হ ) द, ६1 क चे শী শট তি भणश বসত भ्म = 2 क, আপ এ 5 ~ ५ ध ज ५ ङ ~ =+ + = 2 অমলিন फियालइकाड হই ०५ ० ^




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