जैनत्व की झांकी | Jainatva Ki Jhanki

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Jainatva Ki Jhanki by उपाध्याय अमरमुनि - Upadhyay Amarmuni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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षह ও মাছ দাদ चत तारणो ते पाँच भहाप्रत बतलानें हैं, छो प्रत्पक प्ताशु रौ भाई बह छोटा हो भा बड़ा लबस्य पाशन करने हौते हैं “८ ११) भवच अत ते अतत ते अरीर ते किती जौ शरीक कौ टिंटा से स्व करता है बूसरो के करबाता हर करते बालों का अतुमोदत «सजर्थतत करषा । (१) कत्प 1 मत से बचत से क्षपतर श्र मे स्व छूठ से धोलता हर डूघरों ऐप बुलगागा ले बोखने बालों का अतुमौदत करता । (१) गौरथ जते बचने तस्यं नोरी करता नदतो धै करवाना तकरएवै बातों का अतुओरष करता। (४) ब्रत দল मचा से अरौरतपे बंबूस>॑व्यजिभ्ार त स्थव शैगत करता लू दूसरौ पे करबाता श करने बाशों का अभुमौदष करता । (१) भपरिण् मभि भजनते शरीर दे पष बत णादि न ज््वप॑ रखता न पते के रखचाता त रक्षतै बालों का अभुगौदत करता 1 গুল ঘাছু का लीबन तप छोर ध्पाप कौ सच्ची तमभौर होता है। तनै केर बिगढों का प्रलत हृए कोई तद्दी कर छकता 1 अहौ कारण है कि थँत बाद पस्पा यैं बहुत बोसे हैं थब कि देश में हर तरह साथुर्यों दौ बरपार है। जाज कृप्पत ाक्ष ताशु लाभशारियो कौ छौल




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