बिदा | Bida
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
417
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4०० चिदा
इसका सवय क्या है आख़िर ? जब से वहू घर में आईं, तव से यह
ऐसा हो गया है । ठीक है, उसी ने मेरे लड़के को ख़राब कर दिया।
असर कहाँ जाय, है तो आख़िर ग़रीव घर की । वाप के घर में पेट-भर
खाना तक नसीव न था, यहाँ पर दोनो वक्त पेट-मर खाती है,
आख़िर वह सब कहाँ जायगा । जैसी खुद् वरवाद् हे, वैसे ही मेरे
लड़के को भी कर दिया । उसे शीघ्र ही उसके बाप के यहाँ भेजना
चाहिएु। उसे यहाँ की रोटियाँ लगी हैं । जहाँ तक हो सके, उसको
जल्दी ही इस घर से दूर करना चाहिए, नहीं तो यह छूत शायद :
रानी को भी न लग जाय । जहाँ वह गईं, तहाँ मुरारी बावू दीक हो
गए । लड़की सुंदरी थी, इसलिये ग़रीब घर में शादी की, नहीं तो
मं कभी न करना, चाहे उनके सात पुरखे नाक रगड़करं मर जाते ।
आज ही मोहनलाल को लिख दूँ कि आकर वह अपनी गुणवतती
को ले जायें । आजकल के लड़के ही ऐसे होते हं कि जहाँ स्त्री
का मेँह देखा कि उसके गुलाम हो गए, और अगर कहीं खूबसूरत
हुईं, तो फिर कहना ही क्या है ।
इसी समय कुझ्ुुदिनी ने आकर पूछा---''क्या वावूजी आपसे, और
यासे ऊद कहा-सुनी हो गई है ?”
माधव वावृ.के क्रोध का उफान शांत हो गया था। उन्होंने कुछु-
दिनी को देखकर बड़े प्रेम से कहा--“वह नालायक हैं, मेरी वात
नदीं मानता)”
छखदिनी ने पृः -- “च्या वात थो वावृज्ञी १
साध्व वावु ने उत्तर दिया--“छद नहीं। ऐसे ही । क्यों +
भावज का व्यवहार तुम्हारे साथ केसा कै हट শিক
, कैंसुदिनी-“एक तरह से अच्छा ही है, लेकिन रोज ये
धिक्कारती हं 1
साधव वावू---' क्यों ??”
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