तारो से पूछिये | Taaron Se Poochiye

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Taaron Se Poochiye by उमाशंकर - Umashankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तारों से पूछिये श्र की श्रानन्ददायिनी सिहरन दौड़ उठी । हृदय की दशा भी श्रनोखी हो गई । परे्ठ नहीं उसमें किस प्रकार की गुदगुदी होने लगी थी । मन दूर पहुँचकर कल्पनाओओं का सृजन करने लगा । वह बत्ती बुकाकर लेट गया श्रौर फिर उसका मस्तिष्क जया के एक-एक वाक्य को तौल-तौलकर उसका अर्थ लगाने में तललीन होगया। बड़ी रात गये तक उसकी कल्पनाओओं में जया अमृत का स्रोत वहाती रही श्रौर तब वह रजाई से मुँह ढककर सोने का उपक्रम करने लगा। परत्तु पढ़ाई के ऊपर व्यंग्य करके देर में का उलाहना तथा संगीत के प्रति इस प्रकार का झ्राकषंण व्यक्त करने की वातें उसे निद्रा देवी से मिलने दें तब न ? उमेश के प्रति जया का यह प्रेम प्रदशन असाधारण चीज़ नहीं थी । न्िस मनोकामना की पूर्ति के हेतु उमेश ने घर का त्याग किया था पूरी हो गई । श्रव उसे सबेरे चाय पीकर बाहर जाने की क्या झावदयकता थी ? वह दूसरे दिन बाहर नहीं गया । चाय पी श्र पुनः कमरे में अाकर पुस्तकें उलटने लगा परन्तु पढ़ने में तबीयत कहाँ लगने को थी ? जया से बातें करने की भूख जो बढ़ गई थी । वह एक पुस्तक के बहाने नीचे जया के कमरे में झ्राया । जया पढ़ रही थी । उसने पुस्तक दे दी झौर पुनः पढ़ने में लग गई । उमेश पुस्तक लेकर चुपचाप ऊपर चला झाया। उसे बड़ा बुरा लगा । उसे पूर्ण भ्राशा थी कि जया उससे बंठने के लिए कहेगी भ्ौर फिर बातों द्वारा वह अपने को व्यक्त करने का प्रयास करेगा क्योंकि उसे बहुत कुछ कहना भी तो था । कल तो पता नहीं कि समय के कारण मुँह से दाब्द ही नहीं निकल रहे थे । पर उसकी श्राद्या पर तुषारपात हो गया ॥ कह उदास मन पुन कमरे में श्राकर पुस्तक के पन्नों को उलटने लगा । लरिकाई को प्रेम कहो लि कंसे छुटे --सचमुच सूरदासजी ने इस पंक्ति की रचना बड़े श्रनुभव के उपरान्त की होगी । युवावस्था के झागमन के समय जब प्रेम का अंकुर फूटता है तो न वह दबाये दवता है श्रौर न भुलाये भ्ूलता है। बेठे बेठे उस समय पुस्तक के पन्नों को उलटने के उपरान्त उमेद्य पुन नीचे श्राया श्रौर चौके में भाभीजी से इधर-उधर की बातें करने लगा । जथा का कमरा चौके से लगा हुमा था । पौन घंटे तक बात- चीत करने के उपरान्त भी जब जया कमरे से बाहर न निकली तो पुनः




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