पउमचरिउ | Paumachariu
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद्मचरित्
युद्ध काण्ड
सत्तावनवीं सन्धि
हंस द्वीपमे रामकी सेनाको स्थित देखकर, निशाचर
समूहमें क्षोमकी खृहर दौड गयी } रावणक्रा हृदय पवेत
शिखरकी तरह पलभरमें दो टूक हो गया।
[१ ] ठुरहीका भयंकर शब्द सुनकर रंका नगरी ऐसी
छ्ुब्ध हो उठी, मानो समुद्रकी वेछा हो! इस समय तक यह
अनेक छोगोंको विदित हो गया। राजा विभीषण भी मन-ही-
भन खूब दुःखी हुआ | उसे छगा, “मानों कुलूपवेत वज्र से
आहत हो गया है, हँसती-खेलती लंका नगरी व्यर्थ ही नष्ट होने
जा रही है, कल सैंने उसे सना किया था, परन्तु वह नहीं
माना। और अब भी, उसे समझाना अत्यन्त कठिन है?
फिर भी में प्रमसे उसे समझाऊँगा। वह खोटे रास्तेपर है ।
सीधे रास्तेपर छाऊँगा। शायद रावण किसी तरह शान्त हो
जाये । परस्त्रोचोर वह, पापसे भरा हुआ है । इस समय भी
यदि, वह मेरा कहा'नहीं करता तो यह निश्चित हे कि मैं
शत्रुसेना में मिल जाऊंगा! क्यों कि अपहरण की हुई भी,
दूसरेकी स्त्रो संसारमें अपनी नहीं होती। सज्जन भी यदि
प्रतिकूछ चलछता है, तो वह कॉठा है, शत्रु सी यदि अनुकूल
चलता है तो वह सगा भाई है ! क्यों कि दूर उत्पन्न भी दवाई
शरीरसे रोगको बाहर निकाल फेंकती है | ॥१-६॥
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