जलते प्रश्न | Jalate Prashn

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Jalate Prashn by विश्वनाथ - Vishvanath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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লস जन्माष्टमी हे. रात के दस बजे हे. झराझर पानो बरस रहा हें. वर्षा की कुछ बंदें रोशनदान से हो कर मेरे बिस्तर पर भी पड़ जाती हे. पड़ोस मे फोत्तन हो रहा हे. दो घंटे बाद जब झांकी के पट खुलेंगे तो प्रसाद मिलेगा. मुझे न्योता मिल चुका हें सामने के मकान में मास्टर चौधरी रहते हें--बड़े ही हंसमख, 'डड़े ही मिलनसार. संगीत से प्रेम हे. ग्ररूर छ तक नहों गया. फटी घोतो पहने धमा करते हे. उनके बगल वाले मकान में सेठ द्रारकादास टनटनियां रहते हे राखों का व्यापार होता हैं. उनके बारे में न पुछिए. मुश्किल से उनके दर्शन हो पाते है. मिलते हें तो ऐसे जसे बड़े लाट तअल्लुक़दारों व ज़्मीदारों से सिलते ह॥ सिर से पर तक घमंड ओर अभिमान को म॒त्ति. उनके दरवाज़े पर एक नेपाली हमेशा बंदूक ताने खड़ा रहता हैं. तिजोरियों में नोटों की अनगिनत गड़ियां भरी पड़ी हं. उनको कुंजी हमेशा सेठजी अपने जनेंऊ में बांधे रहते हे. उन्हें किसो पर विश्वास नहीं. मेरी आंखों के सामने दोनों को मूत्तियां स्थिर हो गईं. दोनों के बारें में सोचता हूं. कितना फ़रक़ हे दोनों में--एक इनसान, तो दूसरा इनसान सा लगने बाला हेवान; एक निर्धन होते हुए भी बेफ़िक्र, दूसरा धन की ढेरियां लगे रहने पर भी फ़िक्रमंद रहता हे. एक फटी घोती पहने हुए भी प्रसन्न, तो दूसरा तिजोरियों की ताली अपने पास रखे हए भी शंकित, भयभीत. एक को इस लोक को भी परवा नहों, डूसरा धर्मशालाओं और मंदिरों में लाखों लगा कर परलोक सुधारने फो चितामं मगन. एक निराशा के वातावरण में रहते हुए भो आज्ञा




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