भूदान - गंगा चतुर्थ खण्ड | Bhoodan-ganga Khand 4

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Book Image : भूदान - गंगा चतुर्थ खण्ड - Bhoodan-ganga Khand 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भुदान : गांधीजी $ प्रेम-विचार का ग्रचार २३; राजका दिनि एक मदापुस्य का जन्मदिन है। हम स्र मदात्मा माघी का नाम बड़े प्रेम ते लेते हैं। महत्माजी हर रोज स्थितप्रज्ञ के श्लोक, शानी के लक्षण बोलतेये। दम लो्मो को लगता 2 कि मदात्मा माधी स्यितप्रत्तं थे, पर ये कदते कि हैं ज्ञानी नदी, शानियों का दास हूँ । में ज्ञानियों को राद पर पीये चलने की कोशिश कर रहा हूँ ।” महात्मा : विश्व-व्यापक प्रेमी इम उन्हें महात्मा) कहते थे, लेकिन वे खुद को एक त्रच्चे से मी छोय सम भते ओर बच्चे-बच्चे की कद् करते थे। वे प्रेम से कितने मरे थे, इसका वर्णन हम नहीं कर सकते । भला माता के प्रेम का वर्णन बालक कैसे कर सकता है ! हर- एक बच्चा कहता है कि मेरी माता मुझ पर ज्यादा प्रेम करती है] किसी माता के पाँच लड़के हो, तो पाँचों समझते हैं. कि माँ का सबसे ज्यादा अम मुझ पर दी है। इसी तरद दम जह्“ँ जाते हैं, वहीँ मद्गात्माजी के बारे में थद्दी सनते दें । आख्थ प्रदेशवाले कदते हैं. कि आन्ध्र महात्माजी का बहुत प्रिय प्रदेश थां। उधर , उड़ीसावाले कटते हैं कि महात्माजी का हम पर सग्रसे ज्यादा प्रेम-प्यार था। पिद्दरवाले भी यही कहते हैं। इस तरह दर प्रान्तवाले यही कदते सुनाई देते ६ । इस प्रकार जिसका प्रेम व्यापक हुआ ह्ये, वदी “महात्मा कदलाता दै। यतो आत्मा न लो मदाच. होती 2 श्रौर न छोटी। वह विश्व-ब्यापक होती दै। उससे सुलना नहीं हो सकती | फ़िर भी हम तुलता करते और किसीको महात्मा कते द । इसलिए मरा का अर्थ इतना द्वी है कि उसके दय म खरी दुनियाके लिए, प्रेम भरा रदता दै। भगवान्‌ ने समके छदय मैं प्रेम दिया है। दर घर वी মাতা সস की मूर्ति है । बचपन में माता ने इ्मे दूध के साथ प्रेम पिलाया था। प्रेम से सुत्र होता दै। माँ बच्चे के लिए. तकलीक उठाती है। बच्चा बीमार हो, वो रातमर जागती है. श्रोर उठके लिए सब्र कुछ चिन्तन करती दे; लेकिन




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