शिक्षा मनोविज्ञान | Shiksha Manovigyan

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चन्द्रमौलि सुकुल - Chandramauli Sukul

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श्रीमती चन्द्रावती - Shrimati Chandrawati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थम अध्याय के दिया। शिक्षा के केत्र से “उद्देश्य” (21001, “विधि ( 01600 ), भर शिक्षक” ( प'०3006+ ); “विपय” ( 50 ( प०506:' ), विपय” ( 8प01०0०6५ ), “यालकर ( 09 )--इन सबसें पदले “शिक्षक” सब से श्धिक सुख्य था, अब “बालक” सब से अधिक मुख्य हो गया. बालक सब से अधिक मुख्य हो गया। यालक की तरफ सबसे पहले “इन्द्रिय ययार्थवादी” 'रूसो (१७१२-१७४८ ) ने ध्यान सींचा | यद्यपि जॉन लॉफ ( १६३२-१७०४ ) ने भी यालक को ध्यान में रखते हुए शिक्ता-विपयक एक पुस्तक लिखी थी, तो भीं बालक के मनोविज्ञान को सामने रखते हुए, “शिक्षक” सथा 'पाश््य-विपय” 'आदि को तरफ से खींचकर “बालक” पर शिक्ता-विज्ञानियों का ध्यान फैद्रित करने का भेय रूसो को दी है । रुसो मनीविज्ञानी नदी था, न उसे बालकों को शिन्ना देने का कोई विशेष छनलुमव था, तो भी उसने 'बालक' को शिक्षा का केंद्र चनाकर शिशा-विज्ञान को सदा के लिये 'अपना 'आाभारी बना लिया । रूसो के इन्दीं विचारों को लेकर, उन्दें संशोधित तथा परिवर्षित करने का काम पेस्टेलॉजी ( १७४६-१८२७ ), दरार _( १०४६-१५४९ ) वथा फियल ( १७८३-रदधर) ने किया। इन तीनो शिका-विज्ञानियों ने शिक्षा के चोत्र मे मनो- विज्ञान का खूब इस्तेमाल किया । इन तीनो फे शिक्षा-संवंधी परीक्षण मनोविज्ञान के सिद्धांतों पर श्ाधिन थे । रूसो ने. दो सदमलि” ( छिपा! ० ) नामक अं दो लिया था, परन्तु पैसे लॉसी ने कई रिद्ा-संस्वाएँ सोलकर 'वालक' के संपंध में मनाविज्ञास के सिद्धांतों को क्रियात्मक हैप देने का यन्न किया ।




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