गोस्वामी तुलसीदास | Goswami Tulsidas
 श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
18 MB
                  कुल पष्ठ :  
228
                  श्रेणी :  
              यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं  
              लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन-सामग्री १५
आज से कुछ वर्ष पूर्ष तक जो कुछ तुलसीदासजी के जीवन-
चरित के विषय मे लिखा जाता था बह विशेषकर प्रियादास को टीका
में दिए हुए कथानकों अथवा जनश्र॒तियों के आधार पर ही था । इन्हीं
के आधार पर राजा प्रतापसिह ने अपने भक्त-कल्पद्रम” स, महाराज
विश्वनाथसिंह ने अपने भक्तमाल” में ओर महाराज रघुराजसिंह ने
राम-रसिकावलीः मे तुलसोदासजौ का चरित्र लिखा था | पंडित रामगुलाम
द्विवेदी, पंडित सुधाकर द्विवेदी ओर डाक्टर ग्रिग्र्सन तथा अन्य कई
आधुनिक विद्वानों ने तुलसीदासजी के विषय मे बहुत कुछ अनुसंधान
की प्रवृत्ति दिखलाई । पंडित रामगुलामनी ने अपने स-संपादित राम-
चरितमानस कौ भूमिका के रूप म तुलसीदासजी का जीवन-चरितः
लिखा था | सुधाकरजी और निरसन साहब की खोजो का परिणाम समय
समय पर इंडियन ऐंटिक्वेरी में निकलता रहा। मंशी बैजनाथजी और
पंडित महादेवग्रसाद त्रिपाठी ने भी किंवदंतियों को एकत्र कर उनके
जीवन-चरित की कुछ सामग्री प्रस्तुत की है।
परंतु इतने पर भो तुलसीदासजी के जीवन चरित के लिये कोई
निश्चित आधार न मिला। संबत् १६६६ की ज्येष्ठ सास की 'सर्यादा!
मासिक पत्रिका मे बाब इंद्रदेवनारायण ने तुलसीदासजी के एक बृहत्काय
जीवनचरित कौ सूचना प्रकारित की । यह महाकाव्य गोसाइजी के
शिष्य बाबा रघुबरदास का लिखा बताया गया था ।*इंद्रदेवनारायणजी
ने इस ग्रंथ का परिचय यों दिया था--
इस ग्रंथ का नाम तुलसीचरित्र! है । यह बड़ा ही बृहत् ग्रंथ है ।
इसके मुख्य चार खंड हैं--(१) श्रवध, (२) काशी, (३) नमेदा ओर (३) मथुरा ।
इनमें भी अनेक उपखंड हैं | इस ग्रंथ की संख्या इस प्रकार लिखी हुई है -
चौ०-एक लाख तेंतीस हजारा । नौ से बासठ छंद उदारा ॥
यह ग्रंथ महाभारत से कम नहीं है। इसमें गोस्वामी जी के जीवनचरित्र*
विषयक मुख्य मुख्य वृत्तांत नित्य प्रति के लिखे हुए हैं । इसकी कविता अत्यंत
मधुर, सरल और मनोर॑जक है। यह कहने में अ्रत्युक्ति नहीं होगी कि गोस्वामीजी
के प्रिय शिष्य महात्मा रघुबरदासजी-विरचित इस आदरणीय ग्रंथ को कविता
					
					
User Reviews
No Reviews | Add Yours...