साम्राज्य और उनका पटन | Samrajya Aur Unka Patan

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Samrajya Aur Unka Patan by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साम्राज्यों का निर्माण पृ की शासन पद्धति भी पसन्द करने लगे, और उसे अपने यदा प्रचलित करने के लिए वहा के राजनीतिज्ञों का, अपने शासकों के रूप में मी, अभिनन्दन करने लगे | कुछ ऐसे ही क्रम से प्राचीन काल में बौद्ध धर्म प्रचारकों ने लंका श्याम आदि को भारतवर्ष का उपनिवेश बनाया था | कभी-कभी ऐसा भी होता है कि विदेशी मिशनरी या प्रचारकों के उद्योग से जहा कुछ आदमी नये घर को स्वीकार करने वाले हो जाते हैं, वहा उनके कुटिल प्रयत्नों से देश में धार्मिक या साम्प्रदायक दलबन्दी भी हो जाती है, और नये साम्प्रदाय बालों का अपने देश-वन्धुओं से विरोध होने लगता है। विदेशी धम॑- प्रचारक तो यह चाहते ही रहते हैँ कि देश में फूट और संघर्ष पैदा हो जाय। इस संघर्ष की वृद्धि का कारण बहुधा यद्द होता है कि पुराने धर्म वाले अपने इन बन्धुश्नों के प्रति सहिषणुता का व्यवहार नहीं करते, वे इन्हें घर्म-च्युत श्रौर नास्तिक आदि समभ कर तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं; और, यह नया दल जोशीला तो द्ोता ही है, साथ में विदेशियों का सहारा और उच्ते- जना पाकर और भी उदहंडः और अविनयी हो जाता हैं| बस, जहां एक वार इन दोनों दलों की आपस में ठनी कि धर्म प्रचा- रकों ने नवीन विचार वालों का पक्ष लिया।ये अशान्ति के अत्युक्ति-पूर्ण संवाद भेज कर अपने देश वालों की, तथा अपने मतानुयायी अन्य देश वालों की, सहानुभूति प्रास कर लेते हैं, और




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