धीरे बहे दोन रे खंड 3 | Dhire Bahe Don Re Khand 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धीरे वहे दोन रे ** : १७ रेजीमेंटों का एक प्रतिनिधि तमककर बोला, “और में श्रापको वतलाना चाहता हूँ कि हम सव जानते हैं कि कंसे प्रतिमावान आदमी हैं वे ! बडे शानदार जनरल हैं ! जमंनी की लडाई में बडा माम कमाया है उन्होंने ! भाईजान, त्रांति न हो यई होती तो वे ब्रियेडियर से झागे तो बढ़ते नहीं ।” “ग्राप जब जनरल त्रामनोव को जानते नहीं तो इतना सब कहने की आपको हिम्मत कैसे पड़ती है?” जूनियर कैप्टन ने जरा बुके हुए लहजे मे जवाव दिया, “यानी ग्रापका हियाव होता है ऐसे जनरण के वारे मे इस तरह की बातें करने का जिसकी सभी जगह सभी लोग इतनी इंउजत करते हैं ? श्राप यह भूल जाते हैं कि श्राप हैसियत से महज एक करंजाक हैं, भौर कुछ नहीं 1” काजजाक थोड़ा मड़वडा गया । बुदबुदाया, “हुजू र, मैं सिर्फ़ यह कहना चाहता हूँ कि मैंने खुद उनकी कमान में काम किया है। ग्रास्ट्रिया के मो्च पर उन्हेंने हमारे रेजीमेट को काँटेदार तारों मे भोंक दिया था । यही वजह है कि हम उनके बारे में कोई बहुत श्रच्छी राय नही रखते । मुमकिन है कि हमारी राय ग़लत हो 1” “तुम सोचते हो कि संत जाज का त्रॉंस उन्हे यों ही दे दिया गया 2” থলনী श्रोध के वारण मछली गे हट्टी लगभग निगलते हुए प्रागे की पक्तिवाले भ्रादमी पर टूट-सा पड़ा, “तुम्हे आदत हो गई है खुरपेच निका- लने वी | तुम्हारे लिए हर चीज़ बुरी है। तुम्हे वुछ भी सुद्याता नहीं । अगर सुम्हारे जैंगे लोगों की जवान ज़रा कम लम्बी होती तो সা মহ্‌ मुमीवत का पहाड ने होता हमारे सामने। तुम महज बानूनी चिडिया हो, श्रौर बुछ नहीं 1” पूरा-का-पूरा,चेरकास्क जिला त्रासनोत के पक्ष में निकला । बूद्दे जनरल को लोग बहुत पसंद करते थे । उनमें से ज्यादातर लोग रूसी-जापानी लड़ाई से उनके साथ हिस्सा ले चुके थे + प्रफसर उसके अतीत वो लैकर फूल नहीं समाने थे । जनरल गारद-प्रफपर रहे थे। उन्हे शानदार शिक्षा मिली थो। वे शाही महल झौर समा्भाट की सेवा में रहे थे । उदारचेता बुदिवादी इस बात से सन्लुप्ट थे कि त्रामनोव सिर्फ फोडी एनरल ही न थे बल्कि सेलक भी थे | झफमसरो के जीवन की उनकी कहानियाँ कितनी ही




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