सागारधर्मामृतम् | Sagar Dharmamritam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
263
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नेमो वीतरागाय
सटीक ৬০,
सागारधम्राषरतम् ।
भ्रीवद्धमानमानम्य मन्दयुद्धिमवुद्धये ।
धर्माशतोक्तसागार-धर्मटीकां करोम्यहम् ॥ १॥
समयेनादि यज्ञात्र ब्रुवे व्यासभयात्तचित् |
तज्ज्ञानदीपिकारूयैत-त्पञ्निकायां विलोक्यताम॥ २॥
अथ चतुर्थाध्याये---
सुदृग्बोधो गलदबृत्त-मोहों विषयनि स्पृह ।
हिसादेविरत काल्दन्या-चति स्याच्छावकोऽशतः ॥
इत्युक्तम् । अतो मध्यमङ्गरूविधानपूवैक विनेयान्प्रति सागारधर्मामृत
श्रतिपाद्चतया परतिजानीते--
अथ नत्वाऽ्दतोऽक्षुण-चरणान् भ्रमणानपि ।
तद्धेरागिणां मेः सागाराणां भ्रणेष्यते ॥ ९ ॥
सका प्रणेष्यते प्रतिषादविष्यतैऽप्माभि । क , 'उक्तकमतापन्न- धम
एकदेशविरतिलक्षण चारित्रम् । केषा, सागाराणा वक्ष्यमाणलक्षणानां
गृहस्थानाम् । किविशिष्टाना, तदमैरागिणां तेषां श्रमणानां धर्मे सवेविरति-
জব चारित्रे रागिणा संहनमादिदोषादकुषैतामपि प्रीतिमताम्, यतिधमौनु-
शागरदितानामगारिणा देशविरतेरप्यसभ्यगरप्वात् । सवैविरतिकाल्स खलु
देशविरतिपरिणाम । कि कृत्वा प्रेष्यते, नरवा शिर भ्रब्हीकरणादिना
विज्ञुद्धमनोनियोगेन च पूजयित्वा | कान्, अहेतस्तीथकरपरमदेवान् । किंवि-
१ अ्रशयनक्रियाकर्मतापन्न' ।
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