महाकवि अश्वघोष जीवन व्यक्तित्व और कृतित्व | Mahakavi Ashvaghosh jeevan Vyaktitva Aur Krititva

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Mahakavi Ashvaghosh  jeevan Vyaktitva Aur Krititva by हरिदत्त शास्त्री - Haridatt Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द १) इसा की शवीं शती में चुद्धचरित का चीनी श्रनुवाद. हो चुका था, 'झत: इससे पू्व अश्वघोष का काव्य पूर्णरूपेण लच्घ श्रतिष्ठ हो चुका था । इसलिए अश्वघोष घावश्य ही इसा की प्रथम शत्ती में हुए होंगे.। (२) वुद्धचरित मद्दाकाव्य का झन्तिस सर्ग अशोक की संगीति का वर्शन करता है । फलत: अश्वघोष छाशोक के पश्चाद्धावी थे। झाशोक का समय (२६५-२११ इ० पू०) माना जाता हैं । 0 (३) श्वघोप तथा कालिदास को शेलियों की ठुलना करने से पता चलता है कि झश्वघोष की कला कालिदास की कला के लिए पष्ठ- भूसि है । यह तो एक विवादास्पद विपय हैं कि कुछ विद्वान कालिंदास को अश्वघोप का पूर्वावर्ती सानते हूं योर कुछ पश्चादूवर्ती । वस्तुत: यदि देखा जाय तो स्पष्ट पता चलता दे कि अ्श्वघोष के काव्यों में वह विकास नहीं है जो कि कालिदास के काव्यों में प्राप्त है। इसीलिए यह निर्विवाद कथन है कि घ्मश्वघोप कालिदास के पर्ववर्ती हैं । कुछ भी हो सत वैपरीत्य के अनन्तर भी विद्वान्‌ झश्वघोष की तिथि इसा की प्रथम शताब्दी ही स्वीकार करते यह मत न्याय संगत भी प्रतीत होता हैं ।




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