महामंत्र नवकार | Mahamantra Navkar

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Mahamantra Navkar by उपाध्याय अमर मुनि - Upadhyay Amar Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय साहिएएर्मे प्रभव २४ है। बष्णद समाज पें दुछ्‌ पंथ श्य ईएदर शा बाघव इ 7 ह शुष बढ़ा दिप्ण और महूद् बा याघर बतलात हैं 1बुद नाग अप ञ्च्व भौर मध्य আীগ হয হা বুদ [হত অন্তত ণ लिए इस का उपयास बरते हैं। पर तु जन धम की ”स सम्दरद मे भिन्न हो घारणा है ५ हमारी मायताब 4 तमार य> पच परमप्टी या नवश्ारत्रा हो समाप्त शस्वरण है | समूच सलवार ধা ओम म समादन हा जाना है। जरा घ्यात मे साथ सववार मत्र मठ पचपरमप्टी वे प्रधमालर्रा स मिल बर बनते वाले भीम गाए का स्वेस्त देशिए - अरिहत गा জজ मिद (मिद का दूसरा नाम सघरीरी মীলালা ই হুমকি) আশবীতী কা म जायायं का না उपाध्याय ব্য उ साधु (मांधु का दूसरा नाम গুলি নাই समविण) मुनिका 1 अब जरा व्यावरण भद्वारा साय कर्‌ । अमना बा यान्त्या आ 4 उन्न्मा योर मुनि बापू मिलकर मो बन জারা है । जनधम से ओसू कौ आकृति 321 হম प्रकार माना जातो है 1 हाँ एक बात और ध्यान भ रखिए । ओम के ऊपर जो च* নিই उसबा अभिप्राय यद्‌ माना जाता है वि अघचद सिद्ध




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