कसाय पाहुडं | Kasay Pahudam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
439
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तायना ९
करणसम्बन्धी विशेष विचार
आयुकर्ममेसे नरकायुके बन्धनकरण और उत्कर्षणकरण मिश्यात्वगुणस्थानमें ही होते हैं।
संक्रम करणको छोड़कर शेष पांच करण, उदय सौर सतव चौथे गुणस्थान तक होते हैं। লিষ-
ञन्वायुके बन्धनकरण ओर उत्कर्षणकरण दरसरे गुणस्थाय तक ही होषि है । संकरमकरणको छोडकर
शेष पाच करण, उदय मौर खट्व पांचवे गुणस्थान तक होक हैं। . मनृध्यायुके बन्धनकरण ओर
उत्कषंणकरण चौथे गुणस्थान तक होते हैँ । उदोरणाकरण प्रमत्तसंयतगुणेस्णान तक होता है ।
अपकषंणकरण १३वे गुणस्यान तकं होता है । संकमकरणके विना भक्रलस्त उपकामनारकरण,
निकाचनाकरण और निधत्तीकरण अपूवंकरणके अन्तिम समय तक होते ह । तथा उदय भौर
सस्व अयोगिकेवेन्ी गुणस्थान तक होते ह । तथा देवायुके बन्धनकरण और उत्करषंणकरथ
अप्रमत्तगुणस्थान तक होते है । अपकषंणकरण ओौर सत्वं उपश्चान्तकष्षाय गुणस्थान होते हैं।
उदध और उदोरणा असयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक होते है तथा अप्रशस्त उपल्ञामनाकरण,
निधत्तीकरण ओर निकाचनाकरण <वें गुणस्थानके अन्तिम समय तक होते ह । सका मी संक्रम-
करण नही होता ।
साता वेदनीयके बन्धनकरण ओर अपकषषंगकरण सयोगिकेवली गुणस्थान संक होते है ।
उत्कषंणकरण सूष्ष्मसाम्यपराय गुणस्थान तक होता है । उदीरणाकरण और संक्रमकरण प्रमत्त
सयन गुणस्थान तक होते है । उपशामनाकरण, निधत्तीकरण ओर निकाचनाकरण अपूवंकरणके
अन्तिम समय तक होते है । उदय भौर सतव अयोगिकेवली गुण स्थान तक होते ह । भस्तातावेददनीय
के बन्धनकरण, उत्कषंणकरण ओर उदौरणाकरण प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक होते हैं। सक्रम-
करण सूर्मसाम्परायगुस्थान तक होता दै । अपक्षंणकरण सयोगिकेवली गुणस्थान तक होता है ।
उपशामनाकरण, निधत्तीकरण और निकाचनाकरण अपूरवंकरणके अन्तिम समय तक होते है ।
उदय भरो - स्व अयोगिकेवलौ गुणस्थानके अन्तिम समय तक होते है।
मोट गीय कर्मके भपवतंनाकरण ओर उदीरणाकरण सूक्ष्मसाम्यरायमे एक समय अधिक
एक भावि काल शेष रहने तक होते है । उदय इसकं भन्तिम समय प्तक होता है । बन्धनकरण
उत्कषंणकरण ओर सक्रमकरण अनिवृत्तिकरणके विवक्षित स्थान तक होते है। अप्रशस्त उप-
शामनाकरण, निधत्तीकरण ओर निकाचनाकरण अपूवंकरण गुणस्थानके अन्तिम समय तक होते
है । नथा सचव उपान्त मोहुके अन्तिम समय तफ होता है ।
शेष ज्ञानावरण, दशनावरण मौर अन्तराय कर्मके अपवततंनाकरण भौर उदीरणाकरण
क्षीणभोह गुणस्थानमे एक समय अधिक एकं आवलि काल शेष रहने तक होते ह । उदय भौर
सत्त्व अतम समय तक होते हैँ । बन्धनकरण, उत्कषणकरण भौर संक्रमकरण सुदमसाम्पराग्र
गुणस्थान तकं होते है । उपक्लमनाकरण, निधत्तीकरण मौर निकाचनाकरण अयपुरवंकरण गुण-
स्थानके अन्तिम समय तक होते है ।
नाम ओर गोत्र कर्मके बन्धनकरण, उर्कषंणकरण भौर संकमकरण सूक्ष्मसाम्परायगुण-
स्थान तक होतेह! उदीरणा ओर अक्घेणकरण सयोगकेवली गुणस्थानके अन्तिम समय तक
होते हैं। उपद्रामनाकरण, निधत्तीकरण भौर निकाचनाकरण अपू्ंकरण गुणस्थानके अन्तिम
समय तक्र होते है । उदय ओर सस्व अयोगकेव्लीगणस्थानङ़े अन्तिम समय तक होते है ।
उपशामनाक भेद
उपशामना दो प्रकारकी होती है--सव्याघात उपशामना और निर्व्याघाल उपशामना ।
यदि नपु सक वेद आदिका उपशम करते समय बीचमे ही मरण हो जाता है तो वह सब्याधात
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