व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र | Vyakhyapragyapti Sutra

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Vyakhyapragyapti Sutra by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वितीय उद्द शक : देव २५८ चतुविध देवप्रर्पणा २५८, भवनपति देवों के प्रकार, भ्रसुरकुमार एवं उनके विस्तार की प्ररूपणा २५८, सख्यात-भ्रसख्यात विस्तृत भवनपति-भावासों में विविध-विशेषण-विशिष्ट असुरकुमारादि से सम्बन्धित उनपचास प्रश्नोत्तर २५९, वाणव्यन्तर देवों की आवाससब्या, विस्तार, उत्पाद, उद्दवत्तना भौर सत्ता की प्ररूपणा २६१, ज्योतिष्क देवों की विमानावाससब्या, विस्तार एव विविध-विशेषण-विशिष्ट की उत्पत्ति श्रादि की प्रहषणा २६२, कल्पवासी, ग्रेवेयक एव श्रनृक्तर देवो कौ विमानावाससष्या, विस्तार, उत्पत्ति भ्रादि की प्ररूपणा २६२, चतुविध देवौ के सख्यात-प्रसख्यात विस्तृत श्रावासो मे सम्यग्दृष्टि श्रादि के उत्पाद, उद्वर्तन एवं सलाकी प्रर्पणा २६०, एक लेश्यावाने का दूसरी लेश्या वाले देवो मे उत्पाद-निरूपण २६८ ततीय उह शक : अनन्तर २७० चोवीस दण्डको मे ग्रनन्तराहारादि यावत्‌ परिचारणा की प्ररूपणा २७०. चतुथं उट्‌ शकं * नरकपृथिवियाँ २७१ द्रार गाथाए तथा सात पृध्वियाँ २७१, द्वार--प्रथम नैरयिक--नरकावासो की सख्यादि श्रनेक पदो मे परस्पर नुलना २७१, द्वितीय द्वार (सात पृथ्वियो के नैरयिको की एकेन्द्रिय जीव) पृथ्वीस्पर्शानुभव प्ररपणा २७३, तृतीय प्रणिधिद्वार--सात पृथ्वियो की मोटाई रादि की ्ह्पणा २७४, चतुथं निरयन्तद्रार--सात पृथ्वियों के तिकटवर्त्ती एकेन्द्रियों की महाकर्म भल्पकर्मनादि प्ररूपणा २७४, पचमद्वार--लोक-चिलोक का श्रायाम-मध्यस्यान निरूपण २७५, छठा दिशा, विदिशाप्रवहादि द्वारे श्रादि दस दिशा-विदिशाश्रो का स्वरूपनिरू्पण २७७, सप्तम प्रवर्तेतद्वार--लोक-पचास्तिकायनिरूपण २७९, झआ॥ठवाँ प्रस्तिकायस्पर्शनद्वार - पचास्तिकायप्रदेश-गरद्धासमयो का परपर जघन्योक्कृष्टप्रदेश-स्पणंनानिरूपणं २८३, नौवाँ भ्रवगाहनाद्वार-- प्रस्तिकाय-भ्रद्धासमयो का परम्पर विस्तृत प्रदेशावगाहनानिरुपण २९७, दसवाँ जीवावगाढद्वार-- पांच एकेन्द्रियों का परस्पर ग्रवगाहन निरूपण ३०४, মানত अस्ति-प्रदेश-निपीदनद्ार -धर्माधर्माकाशास्तिकायों पर बैठने भ्रादि का दृष्टास्तपुर्वक निपेध- निरूपण ३०५, মান্না दार--बहुसम, सर्वेसक्षिप्त-विग्रह-विग्रहिक लोक का निरूषण ३०७, तरवां दार--नोकमस्थान-लोकसस्थाननिरुपण ३०८ ४ भाधोलोक-तियंक्लोक-ऊरध्वंलोक के प्रत्पबहुत्व का निरूपण ३०९, शठा उद शक , যান (আবি) ३११ चौबीस दण्डको में सान्तर-निरन्तर उपपात-उद्वत्ततनिरूपण ३११, चरमचच प्रावास का वर्णन एवं प्रयोजन ३११ उदायननरेशवृत्तान्त ३१४, भगवान्‌ का राजगृहनगर से विहार, चअम्पापुरी मे पदार्पण ३ (४, उदायननूप, राजपरिवार, वीतिभयनगर आदि का परिचय २१४, परोषधरत उदायन नृप का भगवद्वन्दनादि-अ्रध्यवसाय ३१६, भगवान्‌ का वीतिभयनगर में पदापंण, उदायन द्वारा प्रबरज्याग्रहण का सकत्प ३१७, स्वपूत्रकल्याणकाक्षी उदायन नृपद्वारा भ्रभीचिकुमार के बदले धरपने भानजे का राज्याभिषेक ३१८ केशी राजा से भ्रनुमत उदायन नृप के द्वारा त्याग- [ १६ ]




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