जीवाजीवाभिगमसूत्र भाग - 2 | Jiva Jiva Bhigam Sutra Bhag - 2

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Jiva Jiva Bhigam Sutra Bhag - 2 by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ललीय प्रतियत्ति लवणसमद्र कौ वक्तव्यता १५४. भबुहीवं णामं दीवं लवणे णामं समुहे वटटे वलयागारसंठाणसंटिए सब्बध्ो समता संपरिक्खित्ता णं चिट्ट । लबणे णं भते ! समुद {कि समचक्कवालसंठिए विसमचक्कवालसंठिए ? गोयभा ! समचक्कवालसंटिए नो विसभचक्कवालसंठिए । लवणे णं भते ! समुहे केवहूयं चक्कवालविक्खभेण केवयं परिक्लेवेण पण्णत्ते ? गोयमा । लवणे ण समुहे दो जोयणसयसहस्सादं चकवकवालविक्खमेणं पण्णरसं जोथणसयसह- रुसाई एगासीइसहरसाई सयमेगोणचत्तालीसे किचिविसेसाहिए लवणोदहिणो चक्कवालपरिक्लेवेणं । से ण एक्काए पउमवरवेहयाए एगेण य वणसंडेण स्वजो समता सपरिषखत्ते चिट्ुद, रोग्वि वण्णओ ! सा णं पउमवरवेदिया श्रदजोयण उड उच्चत्तेणं पचधणुसय विक्छभेणं लवणसभुह- सभियापरिक्ेवेणं, सेसे तहेष । से ण वनसंडे देसुणादइ वो जोयणाहं जाव वि हरइ । लवणस्स ण भते ! समुरस्स कति दारा पण्णत्ता † गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा- विजपए, वेजयते, जयते, श्रपराजिए । कहि ण भते । लबणसमुहस्स विजए णाम दारे पण्णत्ते ? गोयसा । लवणसमुरस्स पुरत्थिम- पेरते धायदहखडस्स दीवस्स पुरत्थिमद्धस्स पर्चत्थिमेण सीश्रोवाए महाणईए उरप्प एत्थ णं लषणस्त समुहस्स विजए णामं दारे पण्णत्त, श्रदरुजोयणाहं उड़ उच्चत्तेणं चत्तारि জীমগাই विक्डभेणं एवं तं चेव सव्व जहा जम्बहीवस्स विजए दारे^ रायहाणो पुरत्थिमेण अण्णमि लवणसपुहे \२ कहि ण भते ! लवणसमु वेजयते णाम दारे पण्णत्ते ? गोयमा ! लवणसमुहे दाहिणपेरते धातदखडस्स दाहिणद्धस्त उत्तरेण सेस त चेव । एव जयते वि, णवरि सीयाए महाणर्ईए তি भाणियव्व \ एव अपराजिए वि, णवर दिसिभागो भाणियव्वो । लवणस्स ण भते । समुहस्त दारस्स य दारस्स य एस ण केवदय अबाहाए अंतरे पण्णसते ? गोयमा ! तिष्णेव सयतहस्सा पचाणउदई भवे सहस्साद 1 दो जोयणसय असीआ कोस दारतरे लवणे \\ १ \ जाव प्रबाहाए अंतरे पण्णसते । १. विजयदारसरिसभेयपि । ` २६ किन्‍्ही प्रतियों मे यहा चारो द्वारो का पूरा वर्णन मूलपाठ में दिया हुआ है, परन्तु वह पहले कहा जा चुका है झौर टीकानुसारी भी नही है, अ्रतएवं उसका उल्लेख नहीं किया गया है।




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