अमरसिंह महाराज का जीवन चरित्र | Amarsinghji Maharaj Ka Jeevan Charitra

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Book Image : अमरसिंह महाराज का जीवन चरित्र  - Amarsinghji Maharaj Ka Jeevan Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९५ ) का एकशिष्य घटे राय जी नामक লিহাললান খা বিজন লনা तप करना प्रारम्भ कर रक्खा था ॥ किन्तु उपचासादि तप करते हुए परिणामों की शिथिलता बढ़ गई थी ॥ अपितु সী पुज्य भद्दाराज बुटेरायजों फे मन फे भाव न जानते हुए तप फर्म में सहायक हुए. किन्तु पाप कर्म गुप्त कव रह सक्ता हे इस फदाचत्‌ के अनुसार अन्यदा समय बूटेराय जी भरी महाराज जी से फदने लगे कि द्वे अमरसिंद जी भाजकर तो खाधु पथ का दी व्यवच्छेद्‌ दे तब भ्री मद्वाराज ने कद्दा कि भाप अपने आप को क्‍या समझते दो ॥ तब बूटेरायज्ञी ने फद्दाकि में तो अपने आपको ्राचक मानता हूं ॥ श्री मद्दाराज ! बूटेराय जो भगवती सूत्र मे लिखा दे कि पश्चम काल के अंत समय पय्यैन्त भो चतुर्‌ श्रीसंघ रददेगा, आप अपने मन फो मिथ्यात मे कया प्रवेश कराते हैं तथा चारिष्ादि को भी देस्तीये ॥ बूटेराय ! 1 কী আলন্ हूं ॥ ^ यह्‌ वदी वृष्य ली हँ जो श्वेताम्बर मत को छोड कर पोताम्घर शाखा में गये थे ज्ञिनका नामब॒ुद्धि विजय रक्षत्ता गया था किन्तु यद संस्क्रत वा हिंदी भाषा भो शुद्ध नहीं पढे हुए थे देखो इनको बनाई हुईं मुखपत्ती चरवा नामक पुस्तक अपितु यह एक परिग्रद्द घारी पीताम्बरी के शिष्य हुए थे ॥ 1 सुखपसी चरचानासक पुस्तक में बटेरायजी लिखते हैं कि--अभी जेन सिद्धान्त के फद्दे मुजब कोई साधु हमारे देखने में नहीं माया ओर हमारे म सो तिल मूजव साघु पणा नदीं हँ तिस्से एम भो साधु नहों हें इतिवचनात्‌ इसी प्रकार चतुथं स्तुति शकोद्धार के प्रस्तावना पृष्ट ३९ में भो िखा है जो राजेंद्र चिज्यय घरणेन्द्र विजय संवेगो का घनाया हुमा दे ॥




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