सद्विचार मुक्तावली | Sadiwachar Muktavali

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Sadiwachar Muktavali  by बाबू चेतनदास - Babu Chetandas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कि ॥ পাকা 0 क त | > = = से | अचानक दह के हाते हैँ सबरोयें खड़े ॥ छुट उसकी दया से ये हरे पत्त नहीं । | ताड ते इनका उदे परस हती कदी ||७॥ | कंप उट सवाक पत्त क तरह धरती दहि । राज, घन, जाता रहे पद, मान मिटद्ठी मे मिल ॥| বড (5 जीभ करारी जाय, फाडी जायं आंख मुंह सि 3 ® क भ सकडा टकंड बदन हो पते चमड का छेल ॥ छाड सकता उस समय भा वह नह अपना घरम | जब रह हरएक राय नांचत चमट गरम ॥८। ? चीरों की चक्के सब लाग हो जावे भले । दय! स মাইমাক্কা আল মুক্ত সা जल ॥ লুনা नेकक, घरम का, पापका बादल टले | हैं प्रभा ससार का हर एक घर फूल फल ॥ इस घरा पर प्यार को प्यारी सुधा सब दिन बह । शान्ति की स्व ओर सुन्दर चांदनी थिटको रहे ॥ সা, अयोध्यासिह उपाध्याय ।




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