जैसे चाहो वैसे बन जाओ | Jaise Chaho Vaiso Ban Jao

Jaise Chaho Vaiso Ban Jao by बाबू चेतनदास - Babu Chetandas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्न का करनाओं पर शअखर । अधिक लॉभ की श्राणा से उनका चेतन घदा देता है। ऐसा श्रादमी कभी सफलता लाभ नहीं कर सकता प्रीर जब वह देखता है कि न मेरी आवरू रही है और न॑ मेरे पास ध॑न है तो यद समय और भाग्य को दाप दिया करता है. परन्तु यह का समझता किज्ा कुछ मेरी हालत है, उसका कर्ता আবী मे स्त्रय आप ही हूं। में आप ही अपनी करनी से इस हालत फो पहुचा है । मैंने यहां पर यह तीन उदाहरण केथलं इस सिद्धाने कीं लम्यता को प्रग्ट करने के लिये दिये दि कि धास्तव में मनुष्य खग्तो स्थिति और छवस्था का आप ही पैदा करने घाला है, यद्यर यह बात उसे प्राय. ज्ञात नठी होती | और ऊब मञुन्यं ऊा उं्श्य ता क्रिसी अब्छे काम का हो, परन्तु उसके विचार कोर इच्छा उसके भतिकूल हो ना वह स्थर्यसेव अपने उदेश्य की पति में निरन्तर विष्न डालता है। हम ऐले ऐमे अनेक डडाहरश दे सकते हैं, परन्तु उनकी कोई आकःायणता नहीं, कर्य कि याठकगण, यदि चारं तो श्रयते ही मनं शौर जीवन # मानसिझ सिझांतो का पता लगा सकते हैं आर जब तक गम्मा र्हीं किया जायगा तब तक केवल আহা না, হুজি और प्रमाणों का काम नहीं दे सकतीं | अवस्थार्य इतनी चे चीदा है, विचार की जड़ इतनी गहरी' है ओर खुख की दश्शाय मित्र भिन्न मनुष्यों म॑ एक दूसरे से हननी লিল मिन्न हैं कि कोई ममुन्य किसी की देबल याहा वक्थ का देख कर उसकी अतरकद्ष आत्मिक अवश्या का अजुसाव नही सर शकता, चहि वह स्वयमेव छर नी श्रन्तरद्ग ्मनन्या फो जनता दहै। सम्भव है कि एक मनु थ कुछ बातों १६




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