आध्यात्मिक जीवन | Adhyatmik Jivan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Adhyatmik Jivan by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
8२५... ) पुस्तिका में अपना जीव॑न-बृत्तान्त लिखा हैं, अतः उसको उदाहरण देने में यहाँ कोई हानि नहीं। बहुत वर्ण पहले ज्ञव वह भॉस्तवर्ष में था, तब उसे थिऑसोफिकल सोखा- यटी के प्रवतक दो भहांत्माओं में से एक के दर्शान स्थूल शरीर में ही होने का असाधारण खोभोग्य प्राप्त हुआ था। वे महात्मा अपने तिब्बत के निवास स्थान से बहुत ही कम बाहर जाते है, किन्तु सोसायटी के प्रारंभिक वचेषों' में जब में इसका सद्रुष बना था, तब वे दोनो महासा भारतं में हो थे आध्यात्म-जगंतः (,065प% ए०1१ ) नामक पुस्तक में महात्मा कुशुमि के अम्वतसर में पधारने का चूंता- दै, उन्‍्हेनें कहा कि “मैंने इस 'गुंसुद्धारे मं सिकखों की मदिरा पान करके भूमि पर पड़े देखा, में कल अपने आश्रम की ओर ज्ञाता हैं।” “मेरी समझा भे अधिकाधिक यही आता है कि वे अपनी शक्तियों का सर्वोत्तम उपयोग डच्चलोाकों में ही कर सकते हैं, ओर नीजें के लोकों का कार्य उन व्यक्तियाँ पर छोड़ सकते हैं जे संखार में क्रमश+$ उनके संसग भे आ रहे है । मिंस्टर ब्राउन ने सवसे पहले ते महात्मा कुथुमि के सूच्मलाक में देखा था, और उसके पंदलात्‌ जव वृह कनल आंलंकॉट का सेक्रेटंसी बनकर उत्तर भारत में यात्रा कंर रहा था, तंब श्री गुरुदेव॑ अपने स्थूल शरीर मे ही कनल ऑलकार के। देखने आये.। मि० ब्राउन सी उसी तम्ब के दूसरे भाग में से। रहा था। श्री - शुरुदेव ने पंहिले ते कुछ देर तंक केनेल ऑँलका्र से बात की, और तब तम्बू के दूसरे भाग में गये | कार्ण तो में नहीं समका सकता, कितु मि० ब्राउन ने श्री गुरुदेचके २८




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now