हिन्दू धार्मिक कथाओ के भौतिक अर्थ | Hindu Dharmik Kathao Ke Bhoitik Arth

Hindu Dharmik Kathao Ke Bhoitik Arth by त्रिवेणीप्रसाद सिंह - Triveni Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दंवासुर हे श्रयमा' ये सभी देवता सुदानव कहे गये हूं । निस्वतकार ने दानव का ध्रर्थ (जल का) “दान देनेवाला वत्ताया है ।*. यहाँ मार्क की वात यह है कि 'दानवों के राजा बलि पुराणों में श्रपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध है 1 'मोक्षमुल्लर' के श्रनुसार 'जिश्नस' की स्त्री तथा 'परसिश्रस' की माता 'दानाईं भारतीय दानु भ्रर्यात्‌ चूत्र की माता थी, जिसका भौतिक रूप झ्रघकार है 1 श्रघकार से ही युतिमानु देवों की उत्पत्ति होती है, भरत झघकार रुपिणी 'दानु' का युतिमान्‌ श्रयवा दानवान्‌ देवो की माता होना, किसी प्रकार श्रसगत नहीं है ।' पुन योतनद्यील देवों की. विरोधी शवितयाँ भी इसी श्रन्थकारमय 'दानु' से उत्पन्न हुई होगी । श्रतिप्राचीन काल मे देव, श्रसुर तथा दानव प्रकृति की महान दवितयों के प्रेरक होने के कारण परस्पर सम्बद्ध थे, यहाँ तक कि एक ही देव-विशषेप को श्रसुर तथा दानव भी कहा जाता था । क्ग्वेद में हिरप्याक्ष नाम से सूर्य की प्रार्थना है हे सचविता (सूर्य) देवता ' जिससे झाठ दिशाएँ, तीन लोक तथा सात नदियाँ प्रकाथित है, जो 'हिरप्याक्ष' झर्थात्‌ सोने के रंग की श्राखवालें हे, या चमकीली भ्रखिवाले है, यहाँ श्राइए तथा दानशील यजमान को मनोवाछित रत्न दीजिए ।”* क्रग्वेद में हिरय (सुवर्ण) का देवताओं से विशेष सम्वन्च है । सविता देव हिर्प्याक्ष है तथा हिरण्यहस्त (सोने के हाथवाले) भी है ।” श्रग्निदेव हिरण्यकेश (सोने जैसे केद्यावाले) हूं ।* विष्वेदेव हिरग्यकर्ण तथा मणिगय्रीव (श्र्यात्‌ कान में सोने का कुण्डल तथा गले में मणि पहननेंवाले) है 1” श्रण्नि देव की जिद्ना भी 'हिरण्य' की हो है” तथा दॉति भी । झ्श्चिनीकुसार हिरप्यत्वकू हूं ।'* मेघस्थित्‌ वन रूपी “भुरप्यु' झ्ग्नि हिरप्यपक्ष हैं । ' अदिविनीकुमार स्वय सोने के पसवालें हिरप्यपर्ण है ।'* इन्द्र भी हिरप्यवाहू है 1 श्रष्चिनीकमारों के रथ का “झक्ष' 'हिरण्य' है हे परन्तु जहाँ सभी महान बदिक देवताओं का ह्िरिप्य से इतना घना सम्बन्ध है, वहाँ देवशत्रु (श्राच्छादव ) वृत्र के झनुचर भी सणिना शुम्ममाना हे । ” पुराणों में चदिक सूर्य का. हिरिण्यालल' रुप देत्य अथवा झ्रसुर हिरप्याकष चन । फिर भी सूर्य देवता पूजा के पाम्र रहें । उसमें कोई विशेष नहीं है, ययोकि नियव्वर्ती झार्य देश ईरान में इन्द्र (भ्रपवा धन्य था उन्दर) सो (दे) [9 निर्हम कण (3) 10 51210 0 ५ द1, ए 595 (५) मप्टी पाप यारमी रद जनासर्तारिस्पूनू । दिस्ट्याउ सविता देव दाशुषे बल से सा डर | [सी दुदके से शारिरररा व डाउरान, (द पन्ने पल दुखद (रन दर (रे) उन, (रु (रद) रवि 1




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