सुभंकरी | Subhnkari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
951 KB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन का परिव्याप्त चित्र है-
गाथा जिसकी सब विचित्र है;
इन्द्ध भरे हैं जीवन के क्षण-
सुख-दुख के हैं नित परिरम्भणा
सुख में हर्ष स्वयं खिल पड़ता-
दुख में घिरती ही है जड़ता;
रूदन-हास का खेल निरन्तर-
चलता ही रहता जीवन भर।
इसी तरह शुभ ओर अशुभ का-
मुखड़ा रहता मन में दुबका;
जो विजयी जिस क्षण हो पाता-
वही वहाँ निज शौर्य दिखाता।
पाप-पुण्य की यही लड़ाई-
भू पर हर क्षण होती आई;
मन-मानस में इसी तरह के-
होते हैं रण मिलन-विरह के।
देव और दानव का यह रण-
झेल रहा नित मानव का मन;
कभी दनुज जब विजयी होता-
कष्ट-भार यह भूतल ढोता।
शुभंकरी : 7
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