कुन्द्कुंदाचार्य के तीन रत्न | Kunkundacharay Ke Teen Ratan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kunkundacharay Ke Teen Ratan by गोपालदास जीवाभाई पटेल - Gopal Das Jeevabhai Patel

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गोपालदास जीवाभाई पटेल - Gopal Das Jeevabhai Patel

Add Infomation AboutGopal Das Jeevabhai Patel

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उपोद्धात ५ थोड़ेसे फाड़ हरे-हरे बच रहे हैं। तलाश करने पर पता चला कि वहाँ किसी साधुका आश्रम था ओर उसमें आगमोंसे भरी एक पेटी थी । उसने सममा, इन शाश्चमरन्थोकी मोजूदगीके कारण ही इतना भाग दावानलद्वारा भस्म होने से बच रहा हे । उन प्रन्थों- को बह अपने ठिकाने ले गया ओर बड़ी सावधानीके साथ उनकी पूजा करने लगा । किसी दिन एक साधु उस व्यापारीके यहाँ भिक्ता- के लिए आये । सेठने साधुको अन्नदान दिया। उस लड़केने भी बह प्रंथ साधुकों दान दे दिये । साधुने सेठ और लड़के दोनोंको आशीर्वाद दिया। सेठके पुत्र नहीं था। थोड़े समय बाद बह गुवाल लड़का सर गया ओर उसी सेठके घर पुत्रके रूपमें जन्‍्मा | बड़। होने पर वही लड़का कुन्दकुन्दाबाय नामक महान्‌ आधचाये हुआ । यह हे शाज्दानकी महिमा & ! #इस दम्तकथाका उल्लेख प्रो चक्रतर्तीने पंचास्तिकाय अन्यदी अपनी प्रस्तावनामें किया है । वे कहते हैं कि 'पुरयासव कथा भ्रन्थमें शाखदानके उदादरण रूपमे यह कथा दी गड है ¦ उनके द्वारा उद्िखित यह 'पुरायाखव कथा? ग्रन्थ कोन-सा है, कुछ निश्चित नहीं किया बा सकता। नागराजने (ई० स० १३३१ ) ुरयाखवः नामक বহর प्रन्थका कनड़ीमें भाषान्तर किया है, ऐसा अपने अनुवादमें সন্ত ছিযা है । परन्तु उसके झ्राधार पर शक सं० १७३६ में हुए मराठी अनुवादमें यह कथा नहीं पाई जाती। विशेष नामोंकी रचना आदिसे, जान पढ़ता है, प्रो० चक्रवर्त्तीक पास कोई तासिल भाषाका अन्य द्ोना चाहिए ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now