कुंद कुन्दाचार्य के तीन रत्न | Kund Kundacharya Ke Teen Ratna

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Kund Kundacharya Ke Teen Ratna  by गोपालदास जीवाभाई पटेल - Gopal Das Jeevabhai Patel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपोद्धात प्ू थोड़ेसे माइ हरे-हरे बच रहे हैं। तलाश करने पर पता चला कि बहाँ किसी साघुका ाश्रम था ्ौर उसमें छागमोंसि भरी एक पेटी थी । उसने समझा इन शाख्रमन्थोंकी मौजूदगीके कारण दी इतना भाग दावा नलद्वारा भस्म होने से बच रहा है। उन अन्थों- को ब्रदद अपने ठिकाने ले गया और बड़ी सावधानीके साथ उनकी पूजा करने लगा । किसी दिन एक साधु उस व्यापारीके यददाँ भिक्षा- के लिए भाये । सेठने साघुकों झन्नदान दिया। उस लड़केने भी बच ग्रंथ साघुकों दान दे दिये । साघुने सेठ और लड़के दोनोंको झाशीवांद दिया । सेठके पुत्र नहीं था। थोड़े समय घाद बह गुवाल लड़का मर गया श्र उसी सेठके घर पुद्रके रूपमें जम्मा। बढ़ा होने पर घद्दी लड़का कुन्दकुन्दाचायें नामक मदन श्ाचार्य हुआ । यदद है शास्रदानकी मदिमा & कस दम्तकथाका उल्लेख प्रो चम्वर्तनि पंचास्तिकाय प्रन्यकी श्रपनी प्रस्तावनामें किया है । वे कहते हैं कि पुणयासव कथा ग्रन्यमें शाल्नदानके उदाइरण रूपमें यह कया दी गे दे । उनके द्वारा उद्चिखित यद पुणयासव कथा ग्रन्थ कौन-सा है कुछ निश्चित नहीं दिया ना सकता । नागराजने (इन स० १३३१ ) पुर्यासव नामक संस्कृत मन्यका कनड़ीमें भायान्तर किया है ऐसा झपने श्रनुवादमें प्रकट किया है । पर्तु उसके श्ाधार पर शक सें० १७३६ में हुए मरादी झनुवादमं यह कथा नहीं पाई जाती । विशेष नामोंकी रचना ादिसे जान पड़ता है प्रो चमवर्तकि पास्त कोई हामिल भाषाफा भन्थ दोना चाहिए ।




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