सामर्थ्य सम्रधि और शांति | Samarthya, Samraddhi Or Shanti

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Samarthya, Samraddhi Or Shanti by बाबू रामचंद्र वर्मा - Babu Ramchandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ श्र और मन। हही कम प्रमाणमे आक्रमण होता था, ओर उनकी चिकित्सा भी प्रायः हुत कुछ सीधी सादी ओर नैसर्गिक इञ करती थी । 1, आजकल भी बहुत सी ऐसी जातियाँ हे, जो जंगली समझी जाती है | यदि, इन जातियोकी ओर ध्यान दिया जाय, तो उनमे भी यही जात देखनेमे आवेगी। ऐसी जातियोका आयुर्वेदिक अथवा चिकित्सा-शाल्न- सम्बन्धी ज्ञान बहुत ही अल्प हुआ करता है। उन्नतिके शिखरपर पहुँची [हुई, आजकलकी अनेक पाश्चाद्य जातियोका चिकित्सा-शास्त्रसम्बन्धी ¦ ¶न यद्यपि बहत अधिक वदा चढा है, तथापि वह ज्ञान अपने अनुयायियोकी [चिकित्सासम्बन्धी आवश्यकताओकी पूर्तिमे जितना अधिक समर्थ है, ¡उतना दही अधिक जंगछी छोगोका चिकित्सादाल्नसम्बन्धी ज्ञान भी (उनकी आवश्यकताओकी पूर्तिके लिए समर्थ है। यही नहीं वल्कि यदि (ध्यानपूर्वक देखा जाय, तो उनका न्नान कुछ वातोमे अपेक्षाकुत और भी (अधिक समर्थ तथा श्रेष्ठ सिद्ध होगा। जंगली छोगोको प्रायः साँप आदि ; जहरीरे जानवर या इसी प्रकारके ओर दूसरे जंगी जानवर काते है ; ओर उनके रोगोमेसे इसी प्रकारके रोग मुख्य है । परन्तु, ইউ रोगोपर ; उनकी ओपध्यो केवर शाब्दिक अतिदायेोक्तिमे ही नही वक्ति गुणकी ' दृप्टिसि भी सचमुच रामवाण हुआ करती है। ओर प्रकारके रोग या तो ; उन्हें जल्दी होते ही नही और यदि होते भी है, तो उनका शमन बहुधा खयं प्रकृतिके दी द्वारा हो जाया करता है । पयु पक्षियोमे भी सवसे वडी चिकित्सा करनेवाटी प्रकृति ही देखी , जाती ই। डाक्टरो और वैद्यो आदिके पास वार बार दौड़कर जानेकी आदत ' हम लोगोमे आजकल बहुत तेजीके साथ बढ़ रही है। आजकलके युवकों और वालकोमे शारीरिक सामर्थ्यका जो शोचनीय अभाव देखा जाता है,




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