रामचरितमानस के उपमान | Ramcharit Manas Kay Upman
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36.75 MB
कुल पष्ठ :
632
श्रेणी :
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उमाशंकर - Umashankar
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लीला ओझा - Lila Ojha
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दच्छिप कम || आचाय दूध ट ९ झ् घित की महरप पर पुर्णी प्रकाश पढ़ता है । अनेक आचायां नेता कााषित का स्क विशिष्ट बलकार ही मान लिया है । आचाये कुम्तक ने मी. कुक्तिजीक्तियु में बलंकार के महत्व पर प्रकाश हाता हैं । वास्तव में लपिधावादी बाचारनी थे | ६ ललीय सुर्मेघ में उम्हाम साय मुह चिवचन किया है ३ शो सउन्हान अलंकार की चिवचमा कौ है। प्राचीन सस्कत काव्यशास्त्रीय परंपरा का अध्ययन करने से सा प्रतीत रकति हे कि सवा दियाँ के छोड़कर बन्य दियाँ में ध्वनि स्व कं सम्प्रदाय के उमुया यियाँ ने मी काव्य में बलंकार की अभिवायता प्रतिपादित की है | घ्वनभिवादी वाचायाँ दाएा अलंफारों की महत सका पता एव नहर सफर मल लता किम तनाव तर तन सतत तर सर जाए ध्वति की मीमा सा. करते हुए पं० बलदव नें अपना अतिमत व्यक्त किया हैं कि रुयृयक की स्पष्ट हें कि मामद तथा उदुमट प्रमत्ति अलका रवादी बाचायाँ में फ्रतीयमाम व्यंग्य अर्थ को वाज्य का सहायक मामकर उसे अलंकार के मीतर ही अंतमुँवत किय अलंकार सर्वस्व में छस सदमे की विशद चिवेषन है । ३ शड़ट को व्यर्थ का सिद्धान्त सर्वथा मान्य था तथा काव्य में प्रतीयपाम बर्थ की चिवेम लिए उन्होंने माव नामक नम सके नवीन अलंक काया राधा पक या वि शक काव्याद्श - वण्डी मारतीय सा हित्यशासज बसदेव उपाध्याय पृष्ठ रक्त सं र००७ अलंकार सवैस्व रुयुयक पृष्ठ ३ की ्र रे
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