नाट्यकथामृत | Naatyakathamrit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
243
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शकुतला पं
समीप तक पहुँच गए। इन्हे रोकने के लिये दुष्यंत ने मुनि-
कन्याओं से आज्ञा माँगी, ओर फिर आने का वचन दिया।
राजा का मन शऊकुंतला में लग गया था। फिर चैन कहाँ?
विरह-दुःख होने लगा; आखेट का भारी व्यसन भी छूट गया।
उन्होंने सेनापति को बुलाकर आज्ञा दे दी कि समग्र सेना
राजधानी को लोट जाय, ओर झस्गया बंद कर दी जाय। राजा
ओर विदृषक एकांत में बैठकर शकुंतला-विषयक बातें
करते थे। उन्हें उसके रूप, सौभाग्य, चितवन, चांल आदि
का वारबार स्मरण हो आता था। विदूषक ने उसे नहीं देखा
था, इसलिये वह अल्पभाग्य माना जाता था; परंतु हर बात
को हास्य में डाल देता था। राजा को श्राशा हो गई थी कि
शकुंतला का हृदय सी काम-बाणों से विद्ध हो गया है; पर
वह झुनि के भय से उसे किसी प्रकार प्रकट नहीं करती ।
कराव घुनि आश्रम पर नहीं विद्यमान थे, और राक्तस लोग
कुछ विघ्न करते थे, इसलिये मुनि के दो शिष्यौ >े श्राकर रक्ता
के लिये राजा से प्रार्थना की, जिसको उन्होंने उसी क्षण
स्वीकार कर लिया। परंतु अस्थान करने से पहले ही राजा
की माता का संदेश आया कि चोथे दिन वह कुछ घर्मकार्य
करनेवाली हैं, जिसमें राजा का होना आवश्यक है।
इस संदेश से राजा संकट में पड़े । एक ओर माता की
आज्ञा, दूसरी ओर मुनियों की रक्ता | फिर भी शकुंतला को
छोड़कर अन्यत्र जाना सबसे कठिन था । इससे राजा ने यह
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