भारतीय साहित्य के कुछ रेखाचित्र | Bhaaratiiy Itihaas Ke Kuchha Rekhaachitra

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Bhaaratiiy Itihaas Ke Kuchha Rekhaachitra by भगवतशरण उपाध्याय - Bhagwatsharan Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय विचारों का ऋणी विश्व ५ भारतवष ज्ञणिक की अपेक्षा नहीं करता, वह सत्य तप ओर ज्ञान को लेकर विश्वव्यापी प्रकृति के अटल नियमों की ओर अग्रसर होता हे | विश्व-कल्याण उसका ध्येय है। राष्टीयता उसके सामने अस्थायी ओर सीमित है। यदि उसके सिद्धान्तों का प्रचार इस लोक में हो सकता, यदि स्वाथपर राष्ट्र सके माग में कांटे नहीं बिछाते, तो आज अन्तर्रोप्टीय समझीते के लिये 1.48 0 रि४1०78 की आवश्यकता न होती ओर यदि प्रचार का संगठन यहीं से करना होता, तो कम से कम 1.ट6200० 01 1६४४॥०॥)५ का काय बहुत सरल हो जाता । अस्तु। अब हम बतलाने का प्रयल्न करेगे फ़ सवथा मौलिक इस भारतवपे ने अपनी योग्यता के प्रचार से विश्व को कहाँ तक ऋणी बनाया है, संसार धमं, विचार ओर साहिंत्य में कहाँ तक इसका क़ंदी है | मोलिकता से मेरा अभिप्राय उत्पादन से नहीं है क्‍योंकि यह काय कोई देश अथवा जाति नहीं कर सकती | यह प्रकृति का काय है। देश और जाति तो केवल उसका प्रथम दर्शन करके मौलिक कहलाते हैं। राजाओं में चतुर स्वयं सालो मन ने कहा हे कि ज्ञान केवल पुनः स्मृति है! ( (1०७1 ०तंए: 18 [प [০10161111)101106 ) रौर यूनानी पंडित प्लेटो के कथनानुसार मौलिकता विस्मृति मात्र दै ( ६०४५१ ।& [पा 0111४101 ) । सो प्रथम दाशनिक इस देश की लाया किन-करिन देशों पर किस-किस रूप में पड़ी हे, हम यह देखने का प्रयत्न करेंगे । सब देशों की ऐतिहासिक प्राचीनता का पता चल जाता हे, परन्तु मिसर देश का अतीत अन्धकार की घोर घनता में गुप्त है | वहाँ के पिरामिडों का निर्माण ईसा से सहस्नों वर्ष पूञे हो चुका था। यदि हमें अपने सुदूर अतीत का साज्ञात्कार करना है तो दूसरे देशों के अन्तरंग में काँकना पड़ेगा । उन पिरामिडों के वक्त मं किसी समय के समृद्धिशाली ओर अतीव ऐश्वयवान्‌




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