बुद्ध और बौद्ध - धर्म | Budh Aur Bouddh - Dharm
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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महान् बुद्ध
यह प्रसिद्ध पुरुष जो सम्पूर्ण भारतवर्ष मे आदर से देखा जान
वाला था और जिसके संम्मुख राजा लोग मी सिर झुकाते थे, जब
“ हाथ में भिज्ञा-पात्र लेकर गलियों ओर रास्तो में द्वार-द्वार बिना
कुछ प्राथना किये नीची दृष्टि किये हुए चुपचाप ভা লী আমা অন
लोग भोजन का एक ग्रास भिक्षा-पात्र मे डालते और ११ সাজ
भोजन लेकर वह उसी प्रकार नीची दृष्टि किये हुए अपने म्थान को
लौट जाता । हज़ारों मनुष्य इस महान् त्यागी पुरुष को इस
अवस्था मे देखकर उसे सिर सुकात थे । वह स्त्री-पुरुपो को समान
भाव से उपदेश देता था | इस काल में ख्यां पुरुषो क बुद्धि
विषयक-जीवन मे सम्मिलित थीं। और वे महत्वपूर्ण विषयों पर
विचार करने की अधिकारिणी मानी गह थी |
जव गोतम की ख्याति उसकी जन्म-भूमि तक पर्हुची तो उसके
बद्ध पिता ने उसे एक वार देखने की इच्छा प्रकट की । पिता का
निमन्त्रण पाकर बुद्ध कपिलवस्तु गये श्रौर अपने नियमानुसार
नगर के बाहर एक कुछ्न में ठहर गये | उनके पिता और सम्बन्धी
उनसे मिलते को स्वयं वहाँ गए और दूसरे दिन गोतम स्वय॑ नगर
के अन्दर आए । लोगो ने देखा कि वह महान् पुरुप उन्ही लोगों
के सामने भिन्षा-पात्र लेकर एक-रक आस भिज्ञषा साँग रहा है जिसे
वे अपना स्वामी और राजकुमार मानते थे | ऐसा देखकर नगर
में हाहाकार सच गया | वृद्ध शुद्धोधन ने अपने पुत्र को इस प्रकार
भिज्षा साँगने से रोका, और कहा-- हम लोग प्रतापी योद्धाओं
के वंशज हैं। हमारे यहाँ कभी किसी ने सित्रा नहीं माँगी | तब
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