ब्रह्मचर्य - दर्शन | Brahmacharya - Darshan

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Brahmacharya - Darshan by उपाध्याय अमरमुनि - Upadhyay Amarmuni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपक्रम | १ 1१) ब्रहमाचयं की परिभाषा ब्रहाचये का अर्थ है--मन, वचन एव काय से समस्त इन्द्रियों का संयम करना । जब तक अपने विचारों पर इतना अधिकार न हो जाए, कि अपनी धारणा एवं भावना के विरुद्ध एक भी विचार न आए, तब तक वह पृर्ण ब्रह्मचर्य नहीं है । पाइथेगोरस कहता 7২০ 7091 18 1166९, 1২0 (80 0100 00851250110 101705011 जो व्यक्ति अपने आप पर नियन्त्र०ण नही कर सकता है, वह कभी स्वतन्त्र नहीं ही सकता । अपने आप पर शासन करने की शक्ति विनां ब्रह्मचयं वेः आ नही सकती । भारतीय सरक्षति मे शील को परम भूषण कहा गया है। आत्म-संयम मनुप्य का स्वत्कृप्ट सदृगुण है । ब्रह्मचयं का अर्थ -स्त्री-पुरुष के सयोग एवं सस्पर् से बचने तक ही सीमित नही है । वस्तुतः आत्मा को अशुद्ध करने वाले विषय-विकारों एव समस्त वासनाओ से मुक्त होना ही ब्रह्मचयं का मौलिक अर्थ है। आत्मा की शुद्ध परिणति का नाम ही ब्रह्मचयं द । ब्रद्मचयें आत्मा की निधूम ज्योति है। अतः मन, वचन एवं कम से वासना का उन्यूलन करना ही ब्रह्मचयं है ।! स्त्री-संस्पशं एव सहवास का परित्याग ब्रह्माचयं के अर्थ को पूर्णतः स्पष्ट नहीं करता । एक व्यक्ति स्त्री का स्पर्ण नहीं करता, और उसके साथ सहवास भी नहीं करता, परन्तु विकारो से ग्रस्त है ! रात-दिन विषय-वासना के बीहड़ वनो में मायमारा फिरता है, तो उसे हम ब्रह्मचारी नहीं कह सकते । और, किसी विशेष परिस्थिति में निविकार-भाव से स्त्री को छू लेने मात्र से ब्रह्म-साथना नष्ट हो जाती है, ऐसा कहना भी भूल होगी । गाँधी ने एक जगह लिखा है--“ब्रह्मचारी रहने का यह अथं नहीं है कि मैं किसी स्त्री का स्पद्ां न करूं, अपनो बहिन का स्पर्श भा न कहूँ । ब्रह्मचारी होने का यह अथ है, कि स्त्री का स्पष्ट करने से मेरे मन में किसी प्रकार का विकार $. 10 (७171 10 एछश्ल/९८1 >णाए णा6 18$ 40 5650205 86050101010 09558000691 110फ- 8180, 500601 270 8000, 07711). (2৫) 27671816%1 17 77179




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