नीति शतक | Niti Shatak
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.75 MB
कुल पष्ठ :
432
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दा दे ही |
अलक्तको यथा रक्तो 'निष्पीड्य पुरुस्तथा ।
अवलाभिबंलाद्रक्त: पादसुले निपात्यते
जिस तरह स्त्रियाँ लाख के रंग को जौर से. दवां कर अपने चरणों में
लगाती है, उसी तरह ने अपने अनुरागी था चाहने 'वालो को अपने चरणों मैं
डाल लेती है । अं
पर इन मोहिनियो पर जी-जांन से लट्द्ट होने वालो भौर इन पर सस्पूर्ण
रूप से विश्वास कर लेने वालो और इनकी अस्थर्भक्ति क्रने नालो को अन्त में
दुख पाना, धोखा खाना ,भौर पछत्तांना पढ़ता है, इसमे जरा भी शक नहीं ।
अत, इनको मध्य अवस्था से सेवन करना चाहिए, क्योकि यदि पुरुष इनसे दूर
रहे, तो-फल नहीं मिलता और एकदम इनका हो ने, तो ये स्बनाश का कारण
हो जाती हूँ । सो पुरुष स्थण या स्त्री के गुलाम हो जाते हैं, जो इनको सिर
पर चढ़ा, लेते हैं, जो इनके ही मत्त पर चलते हैं, उनको, दु ख़ भोगने -पडते हैं
भौर ये उन्हे खूब नाच नचाती और स्वयं स्वतन्त्र हो कर मनमाने दुष्कम
करती हैं। कहा है -- - न
तासा वाक्यानि कृत्यानि स्वल्पानि सुगुरूण्यपि ।. ..
फरोति यः छूती लोके लघुत्व याति स्वेत' ॥
, ;. - ,गीतिप्रसग८ प्रमदास कार्यों सेच्छेदुबल स्व्वीषु विवद्ध सानमु ।
मतिप्रसक्त : पुरुषयु तास्ता' क्तीडन्ति कार्करिव लनपक्षे: ॥..
जो कृती पुरुष स्त्रियों की छोटी-बडी या थोडी-बहु्त बातो को मानता है
चहे सब तरह से नीचा देखता है ।
स्त्रियों से अति प्रसग न करना चाहिए,. क्योकि अति भासक्त हुए पुरुपो
से वह पख-नुचे हुए कोवे के समान खेल हैंभ दा
अनुभवी विद्वानों ओर ल्रिकालज् ऋषि-मुियों ने जो कहां है वह अक्षर-
अक्षर सत्य है । जो शास्त्रकारों के अमूल्य उपदेशों पर ध्यान नही देते, उन्हे
दुख के गहरे गड्ढे मे गिर कर कष्ट उठाना ही पडता है । हमारे महाराज
भत्तूं हरि यद्यपि असाधारण विद्वान और वुद्धिमान थे, पर भावी के वश होने के
' कारण, उन्होंने शास्त्रोपदेश पर ध्यान न देकर, महारानी पिंगला को सिर पर
पे
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