षट्प्राभृतादिसंग्रह | Shatprabhritadisngrh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
497
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९१
क-पद्रपाहुडक्की यह सटीक प्रति जो प्राय: शुद्ध है जयपुरके खर करीमन्दि-
रके भण्डारसे पण इन्द्रलालजी शात्तरीके द्वारा प्राप्त हर थी। यह प्राय: शुद्ध है ।
ख-यह सटीक प्रति पूनेके डा० भाण्डारकर प्राच्यविद्यासंशी घनमन्दिर से
प्राप्त हुईं थी। यह प्राय: अशुद्ध ह
ग-यह षद्पाहुडुका मूल पाठ मात्र हं अर् वम्बईके तेरहपंथी मन्दिरके एक
प्राचीन ग्रुटके में लिखा हुआ है ।
ध-ग्रह प्रति सेठ विनोदीराम बालचन्दजीके फर्मके मालिक सेठ लछाऊूच-
न्दजी सेठीकी छृपासे प्राप्त हुई थी । इसमें मूलके सिवाय बहुत ही संक्षिप्त
संस्कृतरीका किसी अन्नातनामा विद्वानकी की हुई हैं। यह बि० सं० १६१०
की लिखी हुई है ।
लिगप्राभ्भबत आर दशाछ्ठप्राभ्नतका संशोधन श्रीमान्ू १० धन्नालालजी
कराशलीवालकी एक ही प्रतिपरसे किया गया हैँ । प्रयत्न करनेपर শী হন সান
तोंकी दूसरी प्रतियां नहीं मिल सकी ।
रयणसारका संशोधन जनेन्द्र प्रेसके अध्यक्ष पं० कलापा भरमापा निटवे
द्वारा प्रकाशित मराठी अनुवादयुक्त प्रतिसे ओर बम्बईके तेरहपंथी मन्दिरिकी
एक हस्तलिखित प्रतिसे किया गया हैं । इसकी छाया नई तेयार की गई है ।
बारह अणुबेक्खा जनग्रन्थरत्नाकर-कार्याछयकी भाषाटीकासहित सुद्धि
प्रतिपरसे छपाई गई हैं ।
सम्पादक महाशयने ग्रथसंशोघन करनेमें शक्तिभर परिश्रम किया है । इ `:
पर भी यदि अशुद्धियां रह गई हों तो उनके लिए क्षमप्रार्थना हे ।
बम्बर । निवेदक-
५ माघसुदी ९५ सं० | नाथूराम प्रेमी,
৭২৩৩ बि० । मत्री ।
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