षट्प्राभृतादिसंग्रह | Shatprabhritadisngrh

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Shatprabhritadisngrh by पन्नालाल सोनी -Pannalal Soni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९१ क-पद्रपाहुडक्की यह सटीक प्रति जो प्राय: शुद्ध है जयपुरके खर करीमन्दि- रके भण्डारसे पण इन्द्रलालजी शात्तरीके द्वारा प्राप्त हर थी। यह प्राय: शुद्ध है । ख-यह सटीक प्रति पूनेके डा० भाण्डारकर प्राच्यविद्यासंशी घनमन्दिर से प्राप्त हुईं थी। यह प्राय: अशुद्ध ह ग-यह षद्पाहुडुका मूल पाठ मात्र हं अर्‌ वम्बईके तेरहपंथी मन्दिरके एक प्राचीन ग्रुटके में लिखा हुआ है । ध-ग्रह प्रति सेठ विनोदीराम बालचन्दजीके फर्मके मालिक सेठ लछाऊूच- न्दजी सेठीकी छृपासे प्राप्त हुई थी । इसमें मूलके सिवाय बहुत ही संक्षिप्त संस्कृतरीका किसी अन्नातनामा विद्वानकी की हुई हैं। यह बि० सं० १६१० की लिखी हुई है । लिगप्राभ्भबत आर दशाछ्ठप्राभ्नतका संशोधन श्रीमान्‌ू १० धन्नालालजी कराशलीवालकी एक ही प्रतिपरसे किया गया हैँ । प्रयत्न करनेपर শী হন সান तोंकी दूसरी प्रतियां नहीं मिल सकी । रयणसारका संशोधन जनेन्द्र प्रेसके अध्यक्ष पं० कलापा भरमापा निटवे द्वारा प्रकाशित मराठी अनुवादयुक्त प्रतिसे ओर बम्बईके तेरहपंथी मन्दिरिकी एक हस्तलिखित प्रतिसे किया गया हैं । इसकी छाया नई तेयार की गई है । बारह अणुबेक्खा जनग्रन्थरत्नाकर-कार्याछयकी भाषाटीकासहित सुद्धि प्रतिपरसे छपाई गई हैं । सम्पादक महाशयने ग्रथसंशोघन करनेमें शक्तिभर परिश्रम किया है । इ `: पर भी यदि अशुद्धियां रह गई हों तो उनके लिए क्षमप्रार्थना हे । बम्बर । निवेदक- ५ माघसुदी ९५ सं० | नाथूराम प्रेमी, ৭২৩৩ बि० । मत्री ।




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