शरणागतिरहस्य | Sharanagatirahasya
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भट्ट मथुरानाथ शास्त्री - Bhatt Mathuranath Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ शरणागतिरहस्य
ज्येष्त होना ही आवश्यक नहीं। मनु तो कहते हैं---महर्षि
आज्लिरस बालक ही थे । उन्होंने अपने पिताओंको पढ़ाया और
पढ़ाते समय ज्ञानवृद्ध होनेके कारण उनको “ঘুলী 1? यह सम्बोधन
किया |
'पितुनध्यापपामास शिकश्षुराज्ञिससः कविः।
पुत्रकानिति होवाच ज्ञानेन परिगृह्य तान् ॥
स्वृति तो यहाँतक कहती है कि-अज्ञ पुरुषको बालक,
ओर मन्त्र देनेवालेको पिता कहना चाहिये ।'
अज्ञ हि वालमित्याहुः पितेत्येव च मन्त्रदम् ।
अव आता है आजगाम | जब रुङ्कासे बिभीषण श्रीरामके
पास गये थे तब 'जगामः (गये) यों कहना चाहिये; आनेका
क्या प्रसङ्ग जहो-जहोँ एेसा प्रसङ्ग आया ই না মুদি “জালা?
ठेसा ही कहते अये है । ओर तो क्या, भगवान् श्रीरामचन्द्रके
विषयमे भी कहते आ হই ই जगाम मनसा सीताम फिर यहां
आजगाम' कासे आजगाम ( आया १) सुनिये--
महर्षि दिखलते है कि विभीषण देवजीव थे} वह तो
ङ्कासे वास्तविक सम्बन्ध ही नहीं रखते थे । सदा भगवान्
श्रीरामचन्द्रजीके चरणोंको ही अपना घर समझते आ रहे थे।
ओर घर आनेमें सदा यों ही कहा जाता है कि हम कल रात्रिको
दस बजे घर आये, न कि गये । कहावतमें भी यों ही कहा गया
है कि 'सर्वेरेका भूला शामको भी घर आ जाय तो भूला नहीं
कहलाता ।” भक्त भगवानकी ही विभूति हैं । भगवान् ही उनका
User Reviews
No Reviews | Add Yours...