मध्यकालीन भारतीय इतिहास विमर्श | Madhyakalin Bhartiya Itihas Vimarsh
श्रेणी : इतिहास / History, समकालीन / Contemporary
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.91 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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No Information available about डॉ. रघुवीर सिंह - Dr Raghuveer Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दातितास सिर ्
पुन; लिखा जांना चाहिए । घटनाओं का वर्णन करके हो
इतिहास-ललेखकों को सन्तेष नहीं कर लेना चाहिए । पुन:
इतिहास को विच्छेद करने से ही काम नहीं चलता । अआवश्य-
कता इस बात की है कि भिन्न भिन्न ऐतिहासिक घटनाओं को
भिन्न भिन्न सूत्नों मे बॉघ कर इतिहास
इतिहास में सिद्धान्तवाद में बह एकता पैदा कर दी जावे कि
्रोर साघारणी-करण ।
घटनाओं का वह महान समूह, एक
सजीव चित्र के समान दिखाई दे। “सिद्धान्तवाद तथा
साधारणी-करण ((0८7८१४४॥2४५1०ए) ता इतिहास के प्राण
हैं। इन्हीं से ऐतिहासिक घटनाओं का स्पष्टीकरण होता
है, इन्हीं की सहायता से इतिहास एकता के सूत्र में बॉघा जा
सकता है, तथा इन्हीं की सहायता से हम इतिहास की उन
भूतकालीन घटनाओं से शिक्षा से सकते हैं । इतिहास-लेखन
में जब जब इन दो सिद्धान्तों की सहायता ली गई है, तब
तब यह शक््य 'होगया है कि इतिहास की सहायता से
जाति श्ौर देश के शासन का व्यावहारिक मांगे जान सकें ।
किन्तु इनका उपयोग निष्पक्षभाव से किया जाना चाहिए,
साथ ही, यह भी झावश्यक है कि, इस बात की जाँच
कर ली जानी चाहिए कि ऐतिहासिक घटनाएँ किसी
सिद्धान्त-विशेष का समर्थन ते नहीं करतीं, तथा पूर्वगासी
मद्दान् इतिहास-छेखकों के सतें में कहाँ तक सत्य पाया जाता
है। इतिहास-शेखक को चाहिए वह स्वयं किसी सिद्धान्त
विशेष का अन्धाजुयायी न बने, तथा खींचतान कर प्रत्येक
घटना का उस सिद्धान्त विशेष से संवस्घ जाड़ने की चेष्टा न
करे । लेखक को चाहिए कि मिन्न मिन्न सिद्धान्तों से ऐतिहासिक
फ्द्
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