भारतीय इतिहास की रूपरेखा भाग - 1 | Bhartiy Itihas Ki Ruparekha Bhag - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51 MB
कुल पष्ठ :
577
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
सर्दियों में लिखी गई, और तभी आर्य सभ्यता वाला प्रकरण ( = प्रक-
रण ८) भी | अब जो तीसरा खण्ड हे उस के सभ्यता के इतिहास-
सम्बन्धी अ्रंश १६२६-३० में पूरे किये गये । सुझे तब यह अनुभव होने
लगा कि भारतवर्ष की जातीय भूमियों की विवेचना भूमिका में करना
आवश्यक है । तब भूमिका खण्ड १६३० के उत्तराध और ३१ के शुरू
में काशी में लिखा गया । उस सिलसिले में कम्बोज ऋषिक आदि प्राचीन
उत्तरापथ के कई देशों का पता चला, और उस कारण, टीक् मै जब
अपने गन्थ को लगभग पुरा हुआ समझ रहा था, सुझे उस में अनेक
परिवत्तन करने पड़े । ठीक उसी समय जायसवाल जी ने शक-सातवाहन
इतिहास पर॒ नई रोशनी डाली जिस से सुरे समचा सातवाहन युग भी
फिर से लिखना पड़ा। १६३१ को गर्मियों में देहरादून मे बैड कर লী
युग को दोहराया और उस का सभ्यता-इतिहास का अंश ( १७ वाँ
प्रकरण ) लिखा गया । उसी बरस सर्दियों में प्रयाग में सातवाहन थुग
फिर से लिखा गया; संबत् १४८८ की साध पूर्णिसा ( फरवरी १६३२ )
को प्रयाग मे वह कायं पूरा हुआ । १६३२ में बरस भर यह ग्रन्थ प्रका-
शक के पास पड़ा रहा; पर १६३३ के माल से अगस्त तक डस की छुपाई
के समय मेंने उस में अन्तिम संशोधन किये | मेरा विचार था कि गुप्त-
युग का इतिहास भी इसी गन्थ के साथ प्रकाशित होगा । सन् १६२७ में
मैंने उसे जेसा लिखा था, वह मेरे पास पड़ा है; पर विद्यमान दुशाओं
में उसे दोहरा कर ठोक करने को मेरे पास अवकाश नहीं है ।
इस रूपरेखा में अनेक कमियाँ हैँ सो खुरे खूब मालुम है। पाठक-
पाठिकाओं से मेरी प्रार्थना है कि वे यह भूलें नहीं कि यह भारतीय इति-
हास की केवल रूपरेखा है; और साथ ही मेरे पास जो तुच्छु साधन थे
उन्हीं के आधार पर मेंने इसे अस्तुत किया है ।
हिन्दी में अभी तक इतिहास-लेखन की कोई पद्धति नहीं बनी । मेरे
रास्ते में यद्ट बड़ी कठिनाई रही । आधुनिक पाश्चात्य ज्ञान को अपने दिमाग
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