परमाणुओं की छाया में | Paramanuon Ki Chhaya Men

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सानव सभ्यता के इतिहास का सबसे कलुषित पृष्ठ 6 भगस्त 1945 की सुबह हिरोशिमा (जापान) वासियों के लिए रोज की ही तरह शुरू हुईं। लोग अपने दैनिक कार्यों में लगे थे। सब बुछ सामात्य ही था पर किसे पता था कि यह सुबह मौत का पैगाम लेकर आयेगी। कोई सवा आठ बजे आसमात्र मे लोगो ने एव हवाई जहाज उडते देखा । उससे कोई चोज गिरी और पल भर मे मृत्यु का ताडव नृत्य प्रारम्भ हो गया । इसी तरह 9 अगस्त 1945 की सुबह नाग्रासाकी (जापान) वासियों के लिए भी दु खदायो साबिव हुई । सुवहं के 11 बजे भास- मान मे हवाई जहाज की मावाज सुनायी पडी मौर एक धमाका हुआ जैसा कि 6 अगस्त को हिरोशिमा पर्‌ हमा धा । पल्रक झप- कते ही आग की लपटोें निकलने लगी । दोनो शहर तहस-नहस हो गये । लाखो जानें गयी । यम विस्फोट के पश्चात्‌ आँखों को अधा कर देने बाली ¬ चमक (पलैश) उत्पत्न हुईं । लागा के आगे अंधेरा छा गया । उनकी चमडी जलने लगी। त्वचा के बाल उड गये | विस्फोट मे उत्पत्त विकिरण के प्रभाव से ऐसी गर्मी और बेचैनी लोगो ने महसूस की कि वे पागलो की भाति नगे ही नदी मे कूदने लगे । । बम विस्फोट,की करता का जाँखो देखा हाल दिल दहलाने बर वाला है। सोभाग्यवश बची महिला कितायामा अपने सस्मरणों मे लिखतोी है आज ध ६ ' परमाणुओ की छाया मे / 13 এ?




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