समयसार - कलश | Samayasar - Kalash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
281
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
है? उत्तर इस प्रकार है कि इन परिणामों को करे तो जीव करता है झ्लोर जोब भोगता है | परन्तु
यह परिराति विभावरूप है, उपाधिरूप है। इस काररा निजस्वरूप विचारने पर यह जीवका स्वरूप
नहीं हें ऐसा कहा जाता है ।'
शुद्धात्मानुभव किसे कहते हैं इसका स्पष्टीकरण कलश १३ की टीकामें पढ़िये--
निरपाधिरूपते जोव द्रभ्य जेता है वेसा हो प्रत्यक्षरूपसे प्रात्वाद ध्ावे इसका नाम शुद्धा-
व्मानुमब है !'
दवादशाङ्खज्ञान श्रौर शुद्धात्मानुभवमे क्या भ्रन्तर है इसका जिन सन्दर अन्दोमे कविवरने
क़लश १४ की दीकामें स्पष्टीकरण किया है वह ज्ञातव्य है--
'ुस प्रसड़में ग्रोर भी संशय होता है कि द्वादशाड्भज्ञान कुछ प्रपूवं लन्धि है) उसके प्रति
समाधान इस प्रकार है कि द्ादशाज़ूजान भी विकल्प है। उसमें भी ऐसा कहा है कि शुद्धात्मानुभूति
मोक्षमार्ग है, इसलिये शुद्धात्मानुमृतिके होनेपर शास्त्र पढ़नेकी कुछ श्रटक नहीं ই)?
मोक्ष जानेमें द्रव्यान्तरका सहारा क्यों नहीं है इसका स्पड्टीकरण कविवरने कलश १५५ की
टीकामें इन शब्दोंमें किया है--
एक ही जीव द्रव्य कारणरूप भी अपनेमें हो परिशमता है श्रौर कार्यरूप भी অন
परिशमता है। इस कारण मोक्ष जानेसें किसो द्रध्यान्तरका सहारा नहों है, इसलिये शुद्ध प्रात्माका
झनुमव करना चाहिये।'
शरीर भिन्न है और आत्मा भिन्न है मात्र ऐसा जानना कार्यकारी नहीं । तो क्या है इसका
स्पष्टीकरण कलश २३ की टीकामें पढ़िये--
'शरीर तो भ्रचेतन है, विनश्वर है। शरोरसे भिन्न कोई तो पुरुष है ऐसा जानपना ऐसी
प्रतीति भिध्याह॒थ्ट जोबके मो होती है पर साध्यसिद्धि तो कुछ नहों । जब जोब द्रव्यका दृव्य-गुरा-
पर्यायस्वरूप प्रत्यक्ष प्रास्वाद श्लाता है तब सम्यग्दशंन-ज्ञान-चारित्र है, सकल कर्सक्षय मोक्ष लक्षरत
भो है ।'
जो शरीर सुख-दु:ख रागद् ष-मोहकी त्यागवुद्धिको कारण और चिद्र ५ भात्मानुभवको कार्य
मानते हैं उनको समभाते हुए कविवर क० २६ में क्या कहते हैं यह उन्हींके समपंक शब्दोंमें पढ़िये--
'कोई जानेगा कि जितना भो शरोर, सुख, दुख, राग, ट थ, सोह है उसकी त्यागबुद्धि कुछ प्रन्य
है-काररारूप है । तथा शुद्ध चिद्रूपसात्रका श्नुभव कुछ धन्य है--कार्यरूप है। उसके प्रति उत्तर इस
प्रकार है कि राग, द् थ, मोह, शरोर, सुख, दु:ख झ्ादि विभाव पर्यायरूप १रिणति हुए जीवका जिस
कालमें ऐसा प्रशुद्ध परिणामहूप संस्कार छूट जाता है उसो कालमें इसके प्नुभव है \ उत्तका विवरण
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