आस्कर वाइल्ड की कहानियाँ | Oskar Waild Ki Kahaniyan

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Oskar Waild Ki Kahaniyan  by धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिशु-देवता श्७ को सुने उसे इतने दिन बीत गये थे कि बढ़ उसे स्वर्गोय संगोत नमझ रहा था । उस वक्‍त बर्फ रुक गया था, आसमान खुल गया था, तूफान नो गया था । गौर खुले हुए वातायनसे सौरभकी लहरें उसे चूम जाती थी । “मैं समझता हूँ चसन्त था गया”, जादूगरने कहा और विन्तरसे उछल कर वाहर झाँकनें गा । उसने एक भआाध्चर्यजनक देखा--दोवाल के एक छोटे-से छेदमेंसे बच्चे भीतर घुस नाये हूं और पेडकी नाखोंपर बैठ गये हैं । पेड़ वच्चोका स्वागत करनेमें इतने छुच थे कि वे फूलोसे लद गये थे और लहराने लगे थे ! चिडियाँ फुदक-फुदककर गीत गा रही थी लौर फूल घासमें-से झाँकिकर हंस रहें थे । किन्तु फिर भी एक कोनेमें अभी था । वहाँ एक बहुत छोटा वच्चा खडा था । वह इतना छोटा था कि डाल तक नही पहुँच पाता था--अतः वह रोता हुआ घूम रहा था 1 पेड़ चर्फ्ते ढँका था और उसपर उत्तरी हवा वह रही थी । “'प्यारे बच्चे चढ आओ !”” पेडने कहा और डालें झुका दी मगर वह वच्चा वहुत छोटा था । वह दुष्य देखकर जादूगरका दिल पिघल गया । “मैं कितना स्वार्थी था !” उसने सोचा, “यह कारण था कि अभी तक मेंरें वागमें वसन्त नहीं आया था ? मैं उन वच्चेको पेडपर चढ़ा दूँगा, यह दीवाल तुडवा दूँगा और तब मेरा उपचन हमेंथाके लिए क्रीडा-भूमि वन जायगा !”” वह नीचे उतरा और दरवाज़ा खोलकर वागमे गया । जब घच्चोंने उसे देखा तो वे डरकर भागे और वोगमें फिर जाडा ला गया । मगर उस वच्चेको आँखोमें आँयू भरे थे और वह ॒जादूगरका आगमन नहीं देख सका । जादूगर चुपचाप पीछेसे गया और उसने घीरेसे उसे उठाकर पेडपर विठा दिया । पेडमें फौरन कलियाँ फूट निकलीं और चिंडियाँ लौट भाई और गाने लगी । छोटे वच्चेने अपनी नन्ही वाहें फैलाकर जादुगरकों चूम लिया । दूसरे वच्चोंने भी यह॒ देखा और जब उन्होंने देखा कि जादुगर | शी; &




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